" क्रोध " इन परिस्थितियों मे यदि आपने क्रोध नहीं किया तो अधर्म माना जाएगा आइये जानते हैं कब क्रोध करना धर्म संगत होता है
महाभारत के समय मे भीष्म पितामह सभी से श्रेष्ठ तथा बुद्धिमान थे, भीष्म पितामह के जीवन का एक ही पाप था, उन्होने सही समय पर क्रोध नहीं किया
द्रोपदी चीर हरण के समय और अपनी आँखों के सामने दुर्योधन के पाप कर्म देखते हुये भी भीष्म पितामह मौन रहे।
वहीं दूसरी तरफ रामायण मे जटायु थे जिनहोने सीता हरण के समय रावण पर क्रोध किया और रावण से कम बलशाली होते हुये भी सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध किया।
समय आने पर मृत्यु दोनों की हुई किन्तु अंत समय मे भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या मिली और जटायु को श्रीराम की गोद।
शास्त्रों मे कहा गया है की धर्म और मर्यादा के लिए किया गया क्रोध पुण्य बन जाता है और अधर्म देखते हुये भी मौन रहना पाप बन जाता है,
बेवजह क्रोध करना अपने कमजोर बना देता है लेकिन सही समय पर क्रोध न करना हमे अंदर से खत्म कर देता है। इसलिए उचित समय आने पर क्रोध अवश्य करें