कहानी स्वर्ग की यात्रा: अकबर बीरबल की कहानियाँ सिरीज़ मे “स्वर्ग की यात्रा” कहानी भी काफी दिलचस्प कहानी है। अन्य कहानियों की तरह इस Hindi Kahani मे भी दिलचस्प मोड़ के साथ साथ एक संदेश भी छुपा होता है। अकबर बीरबल की कहानी – “स्वर्ग की यात्रा” मे भी कुछ ऐसा ही है। चलिये देखते हैं-
होता यूं है की अकबर का बीरबल पर अति-विश्वास तथा हर बात पर बीरबल की राय को सर्वोपरि रखने के कारण बाकी दरबारी बीरबल से ईर्ष्या करने लगे थे।
बादशाह अकबर के दरबार के अधिकांश मंत्री बीरबल से जलते थे. उन्हें बीरबल की अकबर से निकटता फूंटी आँख नहीं सुहाती थी. दरबारी जानते थे कि बीरबल के रहते वे कभी बादशाह अकबर के प्रिय नहीं बन सकते.
एक बार उन्होंने बीरबल को अपने रास्ते से हटाने की साज़िश की. इस साज़िश में उनका सहायक बना बादशाह अकबर का नाई. नाई को बादशाह अकबर के बाल काटते समय उनसे वार्तालाप करने का अवसर मिल जाता है. एक दिन बाल काटते हुए वह अकबर से बोला, “बादशाह सलामत! कल रात मैंने एक सपना देखा, जिसमें आपके अब्बा हुज़ूर मुझे दिखाई दिए.” अपने पिता की बात सुनकर अकबर भावुक हो गए. अकबर के बचपन मे ही पिता की मृत्यु हो गई थी।
भावुक होकर उन्होंने नाई से पूछा, “अच्छा! कैसे लग रहे थे अब्बा हुज़ूर?”
अपनी बात में अकबर को रूचि लेते देख नाई ने अपनी चाल चल दी, “वो ठीक लग रहे थे हुज़ूर. उन्होंने मुझसे कहा कि वे स्वर्ग में हैं और बहुत आराम से हैं. बस एक चीज़ की कमी उन्हें खलती है.”
“वह क्या?” अकबर की उत्सुकता बढ़ने लगी.
“हुज़ूर! वहाँ उनका मनोरंजन करने वाला कोई नहीं है. इसलिए वे ख़ुश नहीं रहते. स्वर्ग से जब भी वे बीरबल को आपको लतीफ़े सुनाते हुए देखते हैं, तो सोचते हैं कि काश बीरबल उनके पास होता. उन्होंने आपके लिए पैगाम भिजवाया है कि बीरबल को उनके पास स्वर्ग भिजवा दिया जाये.”
बीरबल अकबर को अतिप्रिय थे. लेकिन अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने निर्णय लिया कि वे बीरबल को अपने पिता के पास स्वर्ग भेज देगें.अगले दिन उन्होंने बीरबल को अपना फ़रमान सुना दिया. बीरबल अकबर का फ़रमान सुनकर हैरान रह गया. पूछने पर अकबर ने नाई के स्वप्न की बात बीरबल को बता दी. बीरबल को समझते तनिक भी देर न लगी कि ये दरबारियों की उसके खिलाफ़ साज़िश है और इस साज़िश में नाई भी उनके साथ है.लेकिन अकबर के आदेश की अवहेलना करने का साहस उसमें नहीं था.
वह स्वर्ग जाने को तैयार हो गया. लेकिन उसके पहले अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करने के लिए उसने कुछ दिन का समय मांग लिया.
घर पहुँचकर उसने सारी बात अपनी पत्नि को बताई. जिसे सुनकर वह चिंतित हो गई. लेकिन बीरबल इस विपत्ति से निकलने की एक योजना बना चुका था. योजनानुसार अपनी पत्नि के साथ मिलकर उसने अपने घर के आँगन में एक कब्र खोद ली. साथ ही उस कब्र के भीतर से अपने शयन कक्ष को जाती एक सुरंग भी निकाल ली. कुछ दिनों तक घर पर रहने के बाद बीरबल अकबर से मिला और बोला, “जहाँपनाह! अब मैं आपके पिता के पास स्वर्ग जाने को तैयार हूँ. किंतु आपसे मेरा निवेदन है कि मेरे परिवार की परंपरा अनुसार मुझे मेरे घर के आँगन में ही जिंदा दफना दिया जाए.” Akbar Birbal की बात मान गए और उसे उसके घर के आंगन में बनी कब्र में जिंदा दफ्न करवा दिया.
योजनानुसार बीरबल कब्र से लगी सुरंग से होते हुए अपने घर आ गया. उसके बाद दो महीने तक वह घर पर ही छुपकर रहने लगे. दो महीने बाद वो अकबर के दरबार में पहुँचा. सारे दरबारी उसे देखकर हैरान थे. बीरबल के बाल और दाढ़ी बढ़ी हुई थी और वह बड़ा ही विचित्र नज़र आ रहा था.
उसे इस अवस्था में अपने सामने देख अकबर ने पूछा, “बीरबल! तुम वापस आ गए. हमें बताओ, हमारे अब्बा हुज़ूर कैसे हैं? और तुमने अपनी ये कैसी हालत बना ली है? सब ठीक तो है?”
बीरबल ने उत्तर दिया – “जी जहाँपनाह, स्वर्ग में सब ठीक है. मैं आपके पिताजी से मिला और उन्हें ख़ूब सारे लतीफ़े सुनाकर उनका मनोरंजन भी किया. आपके पिता खुश भी बहुत हुए. लेकिन…”
बीरबल के कहना जारी रखा,
“……स्वर्ग में नाई का ना होना एक बड़ी समस्या है. इसलिए तो मेरे बाल बढ़ गए हैं और दाढ़ी भी. आपके पिताजी के बालों और दाढ़ी की हालत तो मुझसे भी बुरी है. इसलिए उन्होंने स्वर्ग में आपके नाई को भिजवा देने का पैगाम भेजा है.”
इत्तेफ़ाक से नाई भी उस दिन वहीं था. बीरबल की बात सुनकर उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. इधर अपने अब्बा हुज़ूर की ये इच्छा भी पूरी करने ले लिए अकबर ने नाई को जिंदा दफ़नाने का आदेश दे दिया.ये आदेश सुनकर डर के मारे नाई अकबर के पैरों पर गिर पड़ा और बीरबल को फंसाने की योजना और उसमें शामिल मंत्रियों के बारे में अकबर को सब कुछ बता दिया. फिर क्या? साज़िशकर्ताओं को उनकी साज़िश की सजा मिलनी ही थी. अकबर ने सबको 50-50 कोड़े लगवाये.
स्वर्ग की यात्रा कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?
स्वर्ग की यात्रा कहानी से हमे 2 सीख मिलती है-
पहली – ये की इंसान अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर हर उलझन से बाहर आ सकता है यदि वह धैर्य से काम ले और समय आने पर उत्तर दे। बीरबल यदि जल्दबाज़ी मे अकबर को समझाने का प्रयास करते तो पिता से भावना के कारण उनकी बात अकबर को समझ मे नहीं आती।
दूसरा– कभी भी बुद्धिमान व्यक्ति के खिलाफ साजिश करने से पहले दो बार विचार कर लेना आवश्यक होता है, कई बार खुद मुश्किल मे पड़ सकते हैं। जैसे वो हिन्दी कहावत है न “लेने के देने पड़ गए” ।