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    भारत मे कितनी जातियाँ हैं? क्या ये जातियाँ सनातन धर्म मे थीं या सच्चाई कुछ और है?

    Googal BabaBy Googal BabaNo Comments9 Mins Read
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    भारत मे कितनी जातियाँ हैं? क्या ये जातियाँ सनातन धर्म मे थीं या कोई सच्चाई कुछ और है
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    Bharat Me Kitni Jatiyan Hain?: Googal Baba के इस आर्टिकल मे हम इसी विषय (भारत मे कितनी जातियाँ हैं) को डिस्कस करेंगे और इसकी तह तक जाने का प्रयास करेंगे। बहुत से लोगों का मानना है की जातिवाद हिन्दू समाज मे मनुस्मृती से आता है और कुछ हद तक ये बात सच भी है। कहा जाता है की आज भारत मे 6000 के आसपास जातियाँ हैं, क्यों? आश्चर्य मे पड़ गए न! हालांकि इसमे दूसरे धर्मों जैसे इस्लाम आदि की भी जातियाँ शामिल है। फिर भी ज्यादा जातियाँ तो हिन्दू धर्म मे ही मिलेंगी।

    ईमानदारी से बात करें तो मनुस्मृति मे जातियाँ कहीं भी नहीं हैं उसमे तो सिर्फ चार वर्णो का जिक्र है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सूद्र, ये तो सिर्फ चार ही हैं, तो ये 6000 के लगभग जातियाँ कैसे पहुँच गई? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हमे अतीत मे जाना होगा और सिलसिलेवार तरीके से क्रोनोलाजी को समझना होगा।

    Table of Contents

    • भारत मे पहली जातीय जनगणना कब हुई ?
    • 1901 Census by Herbert Hope Risley
    • मनुस्मृति के अनुसार भारत मे कितनी जातियाँ हैं?
    • क्या जातियाँ वैदिक समाज का हिस्सा थी? क्या सनातन धर्म मे वर्ण चुनने की व्यवस्था है?
    • वैदिक वर्ण व्यवस्था पर Dr. Bheemrao Ramji Ambedkar के विचार
    • निष्कर्ष :
    • References to this post:

    भारत मे पहली जातीय जनगणना कब हुई ?

    1st Cast Census in India: क्या आप जानते हैं की भारत मे सर्वप्रथम जातियों की गिनती किसने कारवाई थी? शायद आपको जानकार आश्चर्य होगा की पहली जातीय गणना आज़ाद भारत मे नहीं बल्कि गुलाम भारत मे एक अंग्रेज़ ने कारवाई थी।

    Herbert Hope Risley, यही वो नाम है जिसने सबसे पहले जातीयों की गणना कारवाई, उसका मकसद क्या था उसपे बाद मे आएंगे लेकिन ये चुनौती से कह सकते हैं की किसी भी सनातन ग्रंथ मे चार वर्ण को छोडकर किसी भी अन्य जाती का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है।

    1901 Census by Herbert Hope Risley

    बंगाल सर्वेक्षण को पूरा करने के बाद, रिस्ले को 1899 में ब्रिटिश शासन द्वारा जनगणना आयुक्त नियुक्त किया गया, जिन्हें 1901 की आगामी दसवार्षिक जनगणना की तैयारी और रिपोर्टिंग का काम सौंपा गया था।

    Herbert Risley ने सबसे पहले भारतीय लोगों को 7 Races (७ नस्लों) मे विभाजित किया और उसके बाद उनमे से अलग अलग जातियाँ खोज निकाली- वो सात नस्लें इस प्रकार थीं- Aryo-Dravidian, Dravidian, Indo-Aryan, Mongolo-Dravidian, Mongoloid, Scytho-Dravidian and the Turko-Iranian.

    Herbert Risley ने 1901 की जनगणना के बाद अपने कमिशन रिपोर्ट मे 2385 जातियाँ लिखी। उसके बाद अंग्रेजों द्वारा आखिरी जनगणना 1931 मे 4114 भारतीय जातियाँ लिखी। ये मात्र जातीय जनगणना तक सीमित नहीं रहा, इसमे अंग्रेजों ने Hierarchy सिस्टम अपनाते हुये ऊंची से नीची जातीयों को क्रमबद्ध किया जिसका कोई तार्किक आधार मौजूद नहीं है।

    अब कोई आपसे पूछे की Bharat Me Kitni Jatiyan Hain या भारत मे इतनी सारी जातियाँ कहाँ से आयीं तो आप कह सकते हैं ये एक अंग्रेज़ की देन है, ये निःसंदेश अंग्रेजों की “Divide and Rule” पॉलिसी का एक हिस्सा थी। और जातीयों का वैदिक संस्कृति से सिर्फ इतना लेना देना है की भारतीय कर्म अनुसार चार वर्णों मे विभाजित थे।

    Showing Brahma and the origins of caste system as per Manusmriti
    images source: www.bbc.com

    मनुस्मृति के अनुसार भारत मे कितनी जातियाँ हैं?

    मनुस्मृति यदि आपने पढ़ी हो तो उसमे आपको जातियाँ नहीं मिलेंगी, एक भी जाती नहीं और न ही किसी प्राचीन ग्रंथ रामायण, महाभारत मे जातियों का जिक्र मिलता है। यदि उस समय जातियाँ होती राजा रामचन्द्र के नाम के स्थान पर हमें राजा रामचन्द्र सिंह या राजा रामचन्द्र ठाकुर मिलता, या दुर्योधन सिंह, ठाकुर दुर्योधन सिंह, द्रोणाचार्य पाण्डेय ऐसा कुछ देखने को मिलता।

    स्पष्ट है की उस समय और मनु व्यवस्था मे भी सिर्फ चार वर्णो का उल्लेख मिलता है-

    ब्राह्मण – जिनका कार्य समाज को शिक्षित करना था तथा दान और भिक्षा पर जीवन यापन करना था, चूंकि समाज को शिक्षित करना सबसे बड़ा कार्य है इसलिए ब्राह्मण को उच्च स्थान दिया गया। शास्त्रों मे प्राचीन काल के सप्तऋषियों मे एक महर्षि वशिष्ठ द्वारा सरयू तट पर स्थापित गुरुकुल राजपुत्रों के साथ साथ समाज के अन्य वर्गो को मुफ्त शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र बताया गया है।

    क्षत्रिय – जिनका कार्य समाज को सुरक्षा प्रदान करना तथा राजकीय व्यवस्था को संचालन करना होता था। क्षत्रीय मतलब राजपरिवार ही नहीं, युद्ध मे लड़ने वाला हर सिपाही क्षत्रिय होता था।

    वैश्य – व्यापार या व्यवसाय करने वाले लोगों को वैश्य की श्रेणी के रखा गया है।

    सूद्र – सेवा देने वाले लोग जो न सेना मे थे न शिक्षण मे और न ही व्यापार या व्यवसाय मे उन्हे सूद्र की श्रेणी मे रखा गया है। जैसे की आज के समय मे हम सर्विस कहते हैं। वैश्य और सूद्र मे बस इतना सा फर्क है की वैश्य समान या वस्तु के बदले धन लेते हैं और जिनके पास कुछ बेचने को नहीं है वो किसी काम को करने बदले धन प्राप्त करते थे।

    इसका अर्थ ये हुआ की आधुनिक भारत मे मौजूद 6000 से अधिक जातियों का वैदिक परंपरा से कोई संबंध नहीं है, ये समय के साथ साथ बदलते परिवेश और व्यवस्थाओं का परिणाम है।

    सनातन धर्म मे वर्ण चुनने की व्यवस्था
    image source: www.freepressjournal.in

    क्या जातियाँ वैदिक समाज का हिस्सा थी? क्या सनातन धर्म मे वर्ण चुनने की व्यवस्था है?

    आजकल ये प्रश्न की काफी पूछा जाता है की वर्ण जन्म आधारित था या कर्म आधारित, वैसे ये काफी Controversial Topic है परंतु कुछ ऐसे उदाहरण हमारे समक्ष उपस्थित हैं जिन्हे देखकर हम निर्णय कर सकते हैं की वेदों मे वर्णित वर्ण व्यवस्था वास्तव मे कर्म आधारित है या जन्म आधारित।

    Maharishi Vishwamitra

    महर्षि विश्वामित्र – महर्षि विश्वामित्र ब्राह्मण नहीं क्षत्रिय थे, अपने राज्य विस्तार की योजना से साथ विश्वामित्र ने कई राजाओ पर विजय प्राप्त की और एकदिन युद्ध से लौटते समय महर्षि वशिष्ठ के आश्रम के पास विश्राम के लिए सेना के साथ रुके। वहाँ पर महर्षि वशिष्ठ ने उनकी पूरी सेना के लिए भोजन का प्रबंध कराया। जिसे देखकर आश्चर्यचकित राजा विश्वामित्र ने पूछ लिया की ये कैसे संभव है, तब वशिष्ठ जी ने अपनी गाय कामधेनु के बारे मे बताया जिसकी वजह से ये संभव हो पाया।

    विश्वामित्र ने वो कामधेनु गऊ को मांगा लेकिन महर्षि वशिष्ठ द्वारा मना करने पर बलप्रयोग करने की कोशिश जी जिसे क्रोधित होकर कामधेनु की योगमाया से विश्वामित्र की सेना का विनाश हो गया। अब विश्वामित्र को समझ मे अगया था की तपस्वी ब्राह्मण अधिक शक्तिशाली होता है। इसके पश्चात कठोर ताप करके विश्वामित्र ने वेदों के ज्ञान प्राप्त किया और उन्हे महर्षि की उपाधि दी गई। यहाँ पर क्षत्रिय वर्ण से ब्राह्मण वर्ण मे प्रवेश हुआ।

    karna the warrior
    Karna

    कर्ण : महाभारत काल मे कर्ण का एक उदाहरण मिलता है जिसमे उसे सूत पुत्र कहकर राज पुत्रों से प्रतिष्पर्धा करने से रोका गया। इसके ये सिद्ध होता है की समाज मे कुछ लोग इसे जन्म आधारित व्यवस्था मानते थे या मानना चाह रहे थे। हालांकि दुर्योधन ने कर्ण को अंग प्रदेश का राजा घोषित करके राजकुल द्वारा आयोजित प्रतियोगिता मे भाग लेने के लिए योग्य ठहरा देता है। यानि यदि कोई किसी देश या प्रदेश का राजा है तो उसको क्षत्रीय मानकर उसे बराबर का अधिकार दिया जा सकता है और किसी वर्ण का व्यक्ति राजा बन सकता था। यदपि कर्ण जन्म से क्षत्रीय थे परंतु परिस्थिति वश वो सूद्र वर्ण से माने गए और बाद मे उनका प्रवेश क्षत्रिय वर्ण मे प्रवेश हुआ।

    Eklavya
    Eklavya

    एकलव्य : आपने एकलव्य की कहानी भी सुनी ही होगी जिसमे ये कहा जाता है की गुरु द्रोण ने उसे इसलिए अंगूठा मांग लिया क्यूंकी वो वनवासी यानि आदिवासी बालक था आज के समय मे एसटी (Schedule Tribe)। ये बात असत्य है- सच्चाई ये है की एकलव्य हिरण्यधनु नामक निषाद का पुत्र था। उसके पिता श्रृंगवेर राज्य के राजा थे, उनकी मृत्यु के बाद एकलव्य राजा बना, उसने निषाद भीलों की सेना बनाई और अपने राज्य का विस्तार किया। (एकलव्य का परिचय महाभारत के संभवपर्व मे दिया गया है)

    mahabharat adiparva, reference of indian cast system

    एकलव्य को शिकारी पुत्र भी कहा गया है और द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना करने का कारण उसका वर्ण नहीं अपितु गुरु द्रोण का हस्तिनापुर को दिया गया वचन था जिसमे उन्होने कहा था की वे केवल कौरव कुल के राजकुमारों को ही शिक्षित करेंगे जिसके कारण वो वचनवद्ध थे, वो किसी दूसरे राज्य के राजकुमार को धनुर्विद्या नहीं दे सकते थे। इससे यह सिद्ध होता है की एकलव्य राजकुमार था उसके पिता शृंगवेर राज्य के राजा थे और महाभारत काल मे भी किसी भी वर्ण का व्यक्ति राजा बन सकता था।

    महर्षि बाल्मीकी – इनहोने रामायण महाकाव्य की रचना की थी, पहले ये डाकू हुआ करते थे फिर किसी घटना ने इनका हृदय परिवर्तन कर दिया और ये ताप करके ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया, ज्ञान प्राप्त किया और महर्षि बनकर रामायण की रचना की। यानि आप अपने चेनता और ज्ञान के स्तर को बढ़ाकर ब्राह्मण भी बन सकते हैं। यहाँ पर सूद्र से ब्राह्मण वर्ण मे प्रवेश हुआ।

    ये तो काफी प्राचीन काल की बात हुई, इसके अलावा हमारे समाज मे कुछ वर्षों पूर्व भी ऐसे कई संतों के उदाहरण मिलते हैं जो दलित समाज से आते है फिर ब्राह्मण जैसे पूजनीय हैं – जैसे संत रविदास, संत रैदास, कबीर इत्यादि।

    Dr. Bheemrao Ramji Ambedkar
    Dr. Bheemrao Ramji Ambedkar

    वैदिक वर्ण व्यवस्था पर Dr. Bheemrao Ramji Ambedkar के विचार

    सविधान निर्माता Dr. भीमराव रामजी अंबेडकर को दलितों और पिछड़ों के सबसे बड़ा हितैषी माना जाता है, उन्होने दलितों के लिए बहुत कुछ किया है। और इसके कारण वैदिक वर्ण व्यवस्था पर उनके विचार बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। उन्होने स्वयं अपनी पुस्तक “Who are Sudras” मे लिखा है की आधुनिक भारत के दलित और वैदिक वर्ण व्यवस्था मे वर्णित सूद्र वर्ण का कोई संबंध नहीं है। यह पुस्तक आपको पीडीएफ़ फ़ारमैट मे भारत सरकार की अधिकृत वैबसाइट पर मिल जाएगी, जिसका लिंक रिफ्रेन्स सेक्शन मे दिया गया है।

    निष्कर्ष :

    भारत मे कितनी जातियाँ हैं, क्या जातियाँ वैदिक समाज का हिस्सा थी ये काफी controversial प्रश्न हैं। इस लेख मे दिये गए सभी तर्क और तथ्य रिसर्च के बाद तैयार किए गए हैं जिनमे से कुछ reference आपको नीचे दिये गए हैं। इस लेख मे दिये गए तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं की भारत मे मौजूद जातियाँ वेदों मे वर्णित वर्ण व्यवस्था से संबन्धित नहीं है। प्राचीन काल से कोई की किसी भी वर्ण मे उसके लिए जरूरी योग्यता और अनिवार्यता प्राप्त करने के बाद प्रवेश कर सकता था। अतः आधुनिक भारत की जाति और वैदिक काल की वर्ण व्यवस्था का कोई कनैक्शन नही है लेकिन वर्ण व्यवस्था को ताकतवर लोगों द्वारा अपने favor मे दुरुपयोग जरूर किया गया है जिससे कमजोर वर्ग जो कम ताकतवर रहा उसकी उपेक्षा की गई और वो आज दलित के रूप मे जाना जाता है।

    आधुनिक भारत की जाति व्यवस्था की उत्पत्ति कब हुई इसके विषय मे शत प्रतिशत ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता क्यूंकी भारत वर्षों 300 से 500 मुगलों के अधीन रहा उसके बाद करीब 250 वर्ष अंग्रेजों के अधीन रहा। इस दौरान बहुत कुछ हुआ जिसमे भारतीय मूल के लोगों का कोई नियंत्रण नहीं रहा।


    References to this post:

    • Herbert Hope Risley Commission 1889
    • द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा में अंगूठा देने वाले एकलव्य की कथा प्रकाशित- दैनिक भास्कर हिंदी
    • महर्षि विश्वामित्र विकिपीडिया हिंदी पेज
    • Eklavya Parichay-Mahabharat E-Book Page no.400 -Archive.org
    • Dr. BR Ambedkar Written “Who are Sudras” Hindi Vesion PDF

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