आदिकाल के सप्तऋषि कौन थे और उनका ज्ञान विज्ञान मे क्या योगदान रहा ? 

अत्री

इनकी पत्नी का नाम अनुसुइया था इनके तीन पुत्र हुए ऋषि दत्तात्रेय, ऋषि दुर्वासा और ऋषि सोम 

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महर्षि अत्री

महर्षि अत्रि का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. 

सर्वप्रथम सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की खोज इन्होने की थी। 

उन्होंने खगोल शास्त्र के रहस्य खोले. आसमान में टिमटिमाते तारों से लेकर अज्ञात ग्रहों तक के अध्ययन में वो समय से बहुत आगे थे.

वशिष्ठ

इनके पास कामधेनु थी और ये अयोध्या में राजा दशरथ राजगुरु भी थे। वैदिक काल के विख्यात ऋषि, ब्रह्मा के मानस पुत्र और सप्तऋषियों मे से एक थे। 

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महर्षि वशिष्ठ

महर्षि की पत्नी का नाम अरुंधति था।  

रचनाएँ : योगवासिष्ठ रामायण, वसिष्ठ धर्मसूत्र, वसिष्ठ संहिता, वसिष्ठ पुराण, धनुर्वेद

इन्होने सरयू नदी के किनारे गुरुकुल की स्थापना की थी। जहां पर हजारों राजकुमार और अन्य सामान्य छात्र गुरु वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त करते थे। 

यही पर राम, लक्षमण, भरत और शत्रुघ्न ने भी शिक्षा अर्जित किया था।

कश्यप

वैदिक काल ऋषियों मे प्रमुख सप्तऋषि गणों मे से एक थे।  इनकी अलग अलग पत्नियों से देवता, दानव, यक्ष और नागों का जन्म हुआ

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महर्षि कश्यप

ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे।

इन्ही के नाम पर कश्मीर का नाम पड़ा। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। 

ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं

मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए।

गौतम

इनकी पत्नी का नाम अहिल्या था ये कृपाचार्य के वंशज थे। इनका उल्लेख सतयुग, द्वापर और त्रेता युग मे भी मिलता है। 

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महर्षि गौतम

इनके तप से ही त्रयंबकेश्वर महादेव ब्रह्मगिरि क्षेत्र में विराजमान हुये और गोदावरी नदी का अवतरण दक्षिण भारत मे हुआ

न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक या संकलयिता महर्षि गौतम हैं।

इन्होने तर्क विद्या को प्रमाण, सूत्र इत्यादि के साथ नियमबद्ध निरूपण किया। 

महर्षि गौतम ने अपनी पत्नी को श्राप देकर पत्थर बना दिया था जिंका उद्धार द्वापर मे श्रीराम द्वारा हुआ था। 

भारद्वाज

ये रामायण और महाभारत दोनो काल में मौजूद थे। इनके ही पुत्र थे ऋषि गर्ग, गुरु द्रोणाचार्य, तथा इनके पौत्र हैं कुबेर

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महर्षि भारद्वाज 

तीर्थों का राजा प्रयागराज के संस्थापक हैं महर्षि भरद्वाज, इनकी महिमा ऐसी कि प्रभु श्रीराम भी उनका परामर्श मानते थे।

महर्षि भारद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहिता, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं।

इन्होने  "यंत्र सर्वस्व" के द्वारा सम्पूर्ण विश्व को विमान तकनीकी का ज्ञान दिया। 

भरद्वाज सर्वाधिक आयु प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक थे। महर्षि चरक ने उन्हें अपरिमित आयु वाला महर्षि कहा है।

विश्वामित्र

गायत्री मंत्र इन्होंने ही दिया है, शकुंतला इनकी पुत्री थी, राजा "भरत" जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत है वो महर्षि विश्वामित्र के पौत्र थे।

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अंगीरस

ऋग्वेद में इनका योगदान था, ये अंगिरस वंश के जनक थे. महर्षि भारद्वाज और महर्षि गौतम भी अंगिरस वंश से थे। इनके पुत्र हैं देव गुरु वृहस्पति

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अंत तक देखने के लिए धन्यवाद!!

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