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    Chandubhai Virani: एक किसान ने कैसे खड़ी कर दी 4000 करोड़ की कंपनी Balaji Wafers

    Googal BabaBy Googal BabaNo Comments8 Mins Read
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    story of chandubhai virani balaji wafers
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    Chandubhai Virani Balaji Wafers की कहानी: Zero से Hero बनने की कहानी है Chandubhai Virani की Balaji Wafers बनने की कहानी। चंदुभाई विरानी की कहानी से आपको कई Business Lesson सीखने की मिलेंगे, GoogalBaba के इस आर्टिक्ल मे आप जानेंगे Balaji Wafers बनने की True Motivational Story।

    Table of Contents

    • Initial Life & Childhood of Chandubhai Virani
      • Business Lesson Number 1 :
    • Chandubhai Virani : 2nd Phase of Life (JOB)
      • Business Lesson Number 2:
    • Chandubhai Virani : 3rd Phase of Life (BUSINESS ENTRY)
      • Business Lesson Number 3:
    • Chandubhai Virani : 4th Phase of Life (BUSINESS GROWTH)
      • Business Lesson Number 4:
    • Chandubhai Virani Chips से Balaji Wafers बनने की कहानी

    Initial Life & Childhood of Chandubhai Virani

    गुजरात के जामनगर जिले के एक छोटे से गाँव धोराजी मे जन्मे Chandubhai Virani, किसान परिवार था। और एकबार वहाँ पर अकाल पड़ गया जिसके चलते उनके पिताजी “पोपट रामजी वीरानी ” को मजबूरी मे खेती बारी बेचनी पड़ी। 1972 की बात थी ये, और उस समय जमीन बेचके उन्हे 20 हजार रुपए मिले। अब उन्होने सोचा इन पैसों से कुछ व्यवसाय किया जाए, क्यूंकी एक गुजराती कितना भी गरीब हो उसका दिमाग जो है वो Business की तरफ ज्यादा लगता है। पोपट रामजी वीरानी ने काफी सोचने के बाद खाद बीज की दुकान खोली क्यूंकी उन्हे यही सब आता था। 

    लेकिन उसमे उनको लग गया Loss, क्यूंकी उनको उतनी समझ थी नहीं Business की और उस समय वहाँ के हालात भी कुछ ठीक नहीं थे तो ये खाद बीज का काम चल नहीं पाया और खेत बेचकर 20000 जो मिले तो वो भी लगभट खत्म होगया। 

    अब उनकी कहानी उस गाँव से खत्म हो चुकी थी। वहाँ से पलायन करके पोपट रामजी विरानी का परिवार चला आया राजकोट, उस समय Chandubhai Virani 15 साल के थे। 

    फिर वहाँ पे उन्होने Mess शुरू किया बच्चों को खाना खिलाने के लिए लेकिन वह भी नहीं चला।

    उसके बाद Chandubhai Virani को राजकोट मे ही एक Cinemahall मे Gatekeeper की नौकरी करनी पड़ी, और बाकी परिवार भी वहीं रहकर छोटी मोटी नौकरी करने लगा। 

    Business Lesson Number 1 :

    जीवन मे उतार चढ़ाव आते रहते हैं और हमे हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना होता है। जरूरी नहीं की पहले Business मे ही सफलता मिल जाए। खेती की नुकसान हुआ, खाद बीज की दुकान खोली नहीं चली। Mess खोला वो भी नहीं चला और अब जॉब करनी पड़ी। 

    Chandubhai Virani : 2nd Phase of Life (JOB)

    साधारण व्यक्ति का Mindset कुछ ऐसा होता है की वो थोड़ा सा Extra नहीं करना चाहता है। ज़िंदगी मे जिसने नौकरी करते हुये ये कहा की यार मेरा तो यही काम है मै कुछ और नहीं करूंगा, मै Gatekeeper हूँ तो कोई और काम क्यूँ करूँ? 

    लेकिन Chandubhai Virani ने वहाँ पर किसी प्रकार की कोई शर्म नहीं की, Gatekeeper की नौकरी के साथ साथ चंदुभाई virani ने किसी दूसरे काम के लिए मना नहीं किया। साथ साथ वो दूसरे कामों मे भी Interest लेने लगे। जैसे किसी दिन जरूरत पड़ी तो टिकिट भी काट दिया, पोस्टर चिपका दिया, किसी दिन जरूरत पड़ी तो कुछ और काम कर दिया। काम से कभी मना नहीं किया, नखरे नहीं किए। 

    धीरे धीरे उन्होने थिएटर के मालिक का विश्वास जीत लिया और इनके काम से प्रभावित होकर थिएटर की कैंटीन का ठेका इनको दे दिया। 

    Business Lesson Number 2:

    Don’t Shy in Work. कभी भी काम से मत शरमाओ, कुछ एक्सट्रा करना पड़े करो, भले ही पैसे ज्यादा नहीं मिलेगे लेकिन Experience यानि अनुभव जो एक्सट्रा मिलेगा वो कभी बेकार नहीं जाएगा और वी अनुभव पैसे देकर भी नहीं कमाया जा सकता। 

    Also Read– रतन टाटा की 10 बातें जो हर स्टूडेंट को सीखनी चाहिए।

    Chandubhai Virani : 3rd Phase of Life (BUSINESS ENTRY)

    अब Chandubhai Virani की मेहनत और योग्यता से थिएटर की कैंटीन का ठेका तो मिल गया लेकिन interval मे क्या बेचें ये निर्णय नहीं कर पा रहे थे। काफी विचार के बाद मसाला सैन्विच बनाने का निर्णय किया है। 

    तो मूवी मे इनटर्वल मे मसाला Sandwich बिकने लगा और प्रॉफ़िट भी होने लगा, लेकिन रोजाना का कुछ न कुछ सैन्विच बच जाता था जो की अगले दिन काम आयेगा नहीं तो प्रॉफ़िट सारा उसमे चला जाता था। 

    मान लो 100 सैन्विच बनाए 80 बिके और 20 खराब हो गए तो प्रॉफ़िट सारा उसमे निकल गया। अब इनहोने सोचा ये तो काम ठीक नहीं है और 80 के दशक मे आपको पता ही है हमारे पास फ्रीजर नहीं होते थे जिससे की चीजों को preserve करके रखा जा सके।

    तो मसाला सैन्विच का काम नहीं चल पाया तो इन्होने सोचा की इनटर्वल मे और क्या बेच सकते हैं तो इन्होने Wafers Chips बेचना शुरू कर दिया। 

    चिप्स के Venders से बात की और Venders उन्हे चिप्स Supply करने लगे। लेकिन उसमे हुआ क्या की कई बार Vender टाइम मे delivery ही न कर पाये और Business तो सिर्फ 15 मिनट्स का है जो की मूवी इनटर्वल मे ही चलेगा उसके बाद कोई फायदा नहीं माल हो न हो। 

    Venders कई बार बदले लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, इस समस्या से निपटने के लिए इन्होने सोचा की क्यूँ न वफ़ेर्स खुद का बनाया जाए। अब वो चिप्स Handmade हुआ करते थे वो उसमे थोड़ा अलग स्वाद मिलने लगा लोगों को। और इस प्रकार हुई चंदुभाई विरानी के परिवार की एंट्री Wafers के business मे। 

    Business Lesson Number 3:

    Don’t be Afraid of Challenges & Don’t Cry of Situations but Challenge the Situation by making new ways. कभी भी परिस्थितियों से घबराना नही है और रोतडु नहीं बनना है बल्कि परिस्थितियों को चैलेंज करते हुये नए रास्ते बनाना है। 

    Chandubhai Virani : 4th Phase of Life (BUSINESS GROWTH)

    अब ये मत सोचिएगा की बस यहाँ से बन गई 4000 करोड़ की कंपनी, ऐसे नहीं बनते बड़े बिज़नस। जब Chandubhai Virani खुद से wafers chips बनाने लगे तो ये काम चल पड़ा, लेकिन इसको आगे कैसे बढ़ाएँ इसके लिए उन्होने फ़ैमिली मेम्बर्स को चिप्स बनाने के काम मे लगाया।

    लेकिन इसमे एक चैलेंज ये था की सबके चिप्स के स्वाद मे फर्क रहता, किसी मे नमक कम किसी मे नमक ज्यादा। अब क्या करें?

    उन्होने कहा कोई बात नहीं, सीखो !! जब तक सही से न बनने लगे। थोड़ा समय लगा लेकिन 2-3 मेम्बर्स ट्रेंड होगये। अब चंदुभाई विरानी ने सोचा की एक ही थिएटर क्यूँ और दूसरे थिएटर मे भी बात करते हैं। करते करते 3 theaters मे चंदुभाई विरानी के चिप्स बिकने लगे। 

    क्यूंकी अब Chandubhai Virani चिप्स बनाने के काम से फ्री थे और वो परिवार के सदस्यों पर छोड़ रखा था उन्हे Business बढ़ाने का मौका मिल गया और 3 थिएटर के साथ साथ 10-12 retailers को भी जोड़ लिया। शुरुवात मे वो साइकल पर लेकर माल Retailers तक पहुचाते थे उसके बाद मोटरसाइकल से थोड़ा Retailers तक पहुँच बनाई।

    काम बढ्ने लगा तो माल supply की कमी पड़ने लगी अब घरवालों के बस के बाहर जा रही थी डिमांड। यहाँ से expansion की शुरुवात होती है और Chandubhai Virani मशीन लगाने का सोचने लगे।

    लेकिन चिप्स बनाने की मशीन थी काफी मेंहगी जो की पहुँच से बाहर थी। इस का तोड़ निकालने के लिए उन्होने मार्केट से मशीन के पार्ट्स लाकर खुद से मशीन तैयार करने की सोची जो की काफी सस्ता पड़ रहा था। इसके लिए थोड़ी रिसर्च करने के बाद उन्होने मार्केट से पार्ट्स लाकर चिप्स मशीन तैयार की। 

    देखो मशीन लगने से एक चीज का ये लाभ हुआ की जो काम 4 लोग मिलकर नहीं कर पा रहे थे वो काम 1 व्यक्ति मशीन की मदद से 10 लोगों के बराबर प्रॉडक्शन देने लगा। 

    Business Lesson Number 4:

    Transfer the Responsibility and Work on Expansion Step by Step. खुद गल्ले पर बैठकर Business कभी बढ़ा नहीं करते, Expand करना है अपनी ज़िम्मेदारी के लिए दूसरे लोग तैयार करो और खुद व्यापार बढ़ाने पर ध्यान दो। मशीन पर इनवेस्टमेंट सबसे बेहतर होता है क्यूंकी मशीन बिना चिकचिक के 24 घंटे काम करती है तभी काम फैलता है।

    Chandubhai Virani Chips से Balaji Wafers बनने की कहानी

    Geographical Expansion: गुजरात के एक जिले से निकालकर अब बारी थी Geographical Expansion की यानि अपनी चिप्स को पूरे गुजरात मे बेचने की। एक जिले से दूसरे जिले और इस तरह से एक एक करके पूरे गुजरात मे 80% चिप्स मार्केट पे इन का कब्जा होगया।

    अब इनहोने आसपास के राज्यों जैसे राजस्थान महाराष्ट्र मध्य प्रदेश मे अपना माल पहुचाना शुरू किया। आप पूरे भारत मे Balaji Wafers के प्रॉडक्ट मौजूद हैं।

    Product Expansion: Geographical Expansion के प्रोसैस मे इनहोने एक चीज सीखी की हर राज्य मे अलग अलग टैस्ट चलता है इसलिए इनहोने सिर्फ चिप्स पे फोकस न रहकर दूसरे प्रोडक्टस भी लेकर आने शुरू किए। आज इनके पास 50 से ज्यादा अलग अलग taste की नमकीन है, Wafers हैं, Chips हैं और वेस्टर्न स्नैक्स हैं। यानि समय के साथ साथ नए taste flavor और नए प्रॉडक्ट भी launch करते गए और मार्केट मे फैलते गए।

    इसके प्रोडक्टस की खासियत ये है की इनके पास इतनी variety है इतने taste हैं जो दूसरे ब्रण्ड्स के पास नहीं हैं। और इन्ही सब कारणों से Balaji Wafers काफी पोपुलर है।

    ये कोई एक दिन एक रात का खेल नही है इसमे लगी है वर्षों की मेहनत, तपस्या धैर्य और साहस जो हर किसी मे नहीं होता है। आज Chandubhai Virani की कंपनी 4000 करोड़ की Valuation रखती है और इनके पास 5000 से अधिक Employee कार्य करते हैं।

    इन का स्लोगन है “हवा कम, wafers ज्यादा और Taste वाह वाह”

     इनकी कंपनी की पोपुलरिटी देखकर किसी बड़ी कंपनी ने इन्हे 4000 करोड़ का ऑफर दिया था जिसको इनहोने यह कहकर मना कर दिया की “हमारी कंपनी हमारे बच्चों की तरह है और मै अपने बच्चे नहीं बेचता”

    Googalbaba इनकी मेहनत और धैर्य को सलाम करता है। और अपने पाठकों से अपेक्षा रखता है की वो इस कहानी से प्रेरणा लेंगे और जीवन के उतार चढ़ाव का डटकर सामना करते हुये उचाई तक पाहुचेंगे। यहाँ तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद !!

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