Sanatan Dharm aur Vigyan (Science): प्रायः इस विषय पर लंबी बहस हो सकती है कि क्या धर्म विज्ञान के तर्कों पर टिक सकता है। क्या धर्म वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित हो सकता है?या फिर कौन सा धर्म विज्ञान के सबसे करीब है।
वैसे तो विश्व में कई धर्म, संप्रदाय, पंथ हैं परंतु जब जब धर्म का सामना विज्ञान से होता है तो सिर्फ सनातन धर्म ही ऐसा धर्म है जो विज्ञान की कई कसौटियों पर खरा उतरता है।
यह कहना कि सनातन धर्म पूर्ण वैज्ञानिक धर्म है इसमे कोई कमियाँ नही, तो यह भी सरासर गलत होगा। परंतु विज्ञान की किसी धर्म से यदि किसी प्रकार की सहमति बन सकती है तो सिर्फ सनातन से ही हो सकता है।
सनातन धर्म की स्थापना किसने की, कब की ये कोई नही बता सकता, बाकी सभी प्रचलित धर्मों की स्थापना 1500 से 2000 वर्ष पूर्व हुई है जबकि सनातन की स्थापना की कोई तारीख दर्ज नही है ये सबसे पुरानी संस्कृति हैं जो सदियों से चली आ रही है ।
अब आते है मुख्य विषय पर, कि SANATAN DHARM AUR VIGYAN किस प्रकार एक दूसरे के करीब हैं:
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सोलर सिस्टम (Sanatan Dharm aur Vigyan)
हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी जहां हम रहते हैं, हमारे सोलर सिस्टम का एक ग्रह हैं। जिसका मुख्य ऊर्जा स्रोत सूर्य है, जिसमे नौ ग्रह (Nine Planets) हैं। (नौवे ग्रह “यम” को अधिक छोटा होने के कारण हाल फिलहाल मे ग्रह की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है)
सोलर सिस्टम की जानकारी हमे करीब 200-250 वर्ष पूर्व विज्ञान द्वारा प्राप्त हुई है। परन्तु सनातन धर्मग्रथों में नौ ग्रह की पूजा सदियों से चलती चली आरही है जिसमें सूर्य का विशेष महत्व है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे पूर्वज न केवल सोलर सिस्टम के बारे में जानते थे अपितु नौ ग्रहों के बारे में भी जानते थे। अर्थात Sanatan Dharm aur Vigyan आपस मे मेल खाते हैं।
सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण
विज्ञान के अनुसार दो महत्वपूर्ण खगोलीय घटनाएं Solar Eclipse और Looner Eclipse टेलस्कोप की खोज के बाद अस्तित्व में आयी। जो कि मात्र 70-80 वर्ष पुरानी बात है।
जबकि दूसरी तरफ सनातन धर्म मे ये दोनों घटनाओं की जानकारी ज्योतिष गणना के आधार पर हमें सदियों से न केवल ज्ञात थी अपितु हम इसको मानते हुए भी आये हैं। जो आज विज्ञान द्वारा सिद्ध है।
नासा का करोड़ो का सॅटॅलाइट हमें सूर्य और चंद्र ग्रहण की जितनी सटीक जानकारी देता है उतनी ही सटीक जानकारी हमारा 10 रुपये वाला कैलेंडर युधिष्ठिर के जमाने से देता आ रहा है। अर्थात sanatan dharm aur vigyan (science) का संबंध सहस्त्र वर्षों से हैं।
Cycle of Planet Jupiter एवं कुम्भ मेला
वृहस्पति ग्रह जो हमारे सोलर सिस्टम का भारी भरकम और सबसे बड़ा ग्रह है, उसकी cycle 12 वर्ष की होती है।
यही प्रत्येक 12 वर्ष पर वो पुनः उसी राशि में दुबारा प्रवेश करता है। यह जानकारी साइंस हमे महज 50-60 वर्ष पहले दे पाई। परंतु सनातन धर्म मे कुम्भ मेले का आयोजन होता है जो वृहस्पति ग्रह (Jupiter) की cycle पर आधारित है और हर 12 वर्ष में आयोजित होता है, ऐसा आदिकाल से होता चला आया है। अर्थात सनातन धर्म का विज्ञान इतना उन्नत था कि हमारे पूर्वजों को वृहस्पति की 12 वार्षिय Cycle का भी ज्ञान था।
अणु और परमाणु से संबंधित श्लोक
अणु और परमाणु इस ब्रह्मांड मे मौजूद सबसे बारीक (छोटे) कण हैं जिसे साइन्स मानती है। आप जानते हैं अणु और परमाणु की संकल्पना डाल्टन द्वारा (6 सितम्बर 1766 – 27 जुलाई 1844) के दौरान की गई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं की ऐसी की संकल्पना ईसा से 600 वर्ष पूर्व यानि डाल्टन से करीब 2600 वर्ष पूर्व आचार्य कणाद ने कर दी थी।
इसके अलावा वायु पुराण मे उल्लिखित श्लोक हमे परमाणु की विशेषता की तरफ इंगित करते है।
परमाणुः सुसूक्ष्मस्तु बावग्राह्यो न चक्षुषा।
यदभेद्यतमं लोके विज्ञेयं परमाणु तत् ॥ ३९.११७ ॥
जालान्तरगतं भानोर्यत्सूक्ष्मं दृश्यते रजः।
प्रथमं तत्प्रमाणानां परमाणुं प्रचक्षते ॥ ३९.११८ ॥
अष्टानां परमाणूनां समवायो यदा भवेत्।
त्रसरेणुः समाख्यातस्तत्पद्मरज उच्यते ॥ ३९.११९ ॥
हिन्दी अर्थ: परमाणु बहुत सूक्ष्म है और इसे आँख से नहीं देखा जा सकता है। जिसे संसार में सबसे अभेद्य माना गया है, वह है परमाणु। वह धूल जो जल के भीतर सूर्य के प्रकाश मे समान सूक्ष्म दिखाई देती है, पहले को इसके अनुपात का परमाणु कहा जाता है। जब आठ परमाणुओं का संयोजन होता है। उससे उत्पन्न धूल के संयोजन को कमल धूल कहा जाता है
भारतीय दर्शन में परमाणु का उल्लेख पाश्चात्य विज्ञान के अभ्युदय से कई सदी पहले ही कर दिया गया था। परमाणु और अणु, कई मतों के अनुसार एक ही तत्व से दो नाम हैं। भिन्न भिन्न दर्शन के अनुसार परमाणुओं का अपने तरीके से वर्णन किया गया हैं। परंतु इसका सारांश यह निकलता हैं कि परमाणु पदार्थ का सबसे सूक्ष्म अंग हैं, जिसका अधिक विभाजन नहीं किया जा सकता।
आचार्य कणाद
महान परमाणुशास्त्री आचार्य कणाद पूर्व 3500 ईसापूर्व 600 से भी पहले हुए थे गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारका के निकट) में जन्मे थे। इन्होने “वैशेषिक दर्शनशास्त्र“ की रचना की | दर्शनशास्त्र (Philosophy) वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है| माना जाता है कि परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार सर्वप्रथम इन्होंने किया था इसलिए इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा |
इस प्रकार आप इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं की SANATAN DHARM AUR VIGYAN एक दूसरे के अलग नहीं हैं।
Number 108 (Sanatan Dharm aur Vigyan मे 108 का महत्व)
सनातन धर्म मे 108 की संख्या का बहुत अधिक महत्व है। माला जाप करने के लिए 108 बार जाप किया जाता है। अब आप कहेंगे इसका विज्ञान से क्या लेना देना? चलिये देखते हैं –
सूर्य का व्यास: धरती और सूर्य के बीच की दूरी सूर्य के व्यास का 108 गुना है।
चंद्रमा का व्यास: धरती और चंद्रमा की दूरी भी चंद्रमा के व्यास का 108 गुना है।
हमारे शरीर मे 108 चक्र मौजूद हैं. जिनपे हम काम कर सकते हैं। हमने 84 बुनियादी आसान बनाए हैं, यदि आप इनमे से 21 भी ठीक से कर लेते हैं, उनमे से एक पर भी महारथ हासिल कर लेते हैं तो आपका सिस्टम और ब्रह्मांड एक सीध मे आ जाएंगे और ऐसा होगया तो आप ब्रह्मांड के कई रहस्यों को उगागर करने की स्थिति मे आ जाएंगे।
सनातन हमेशा इस चीजों के प्रति और ब्रह्मांड की बुनियादी व्यवस्थाओं के प्रति जागरूक रहा है, इसलिए इस धर्म को विज्ञान के सबसे अधिक नजदीक माना जा सकता है।
गुरूत्वाकर्षण का नियम (Law of Gravity)
हम सभी ने वो कहानी पढ़ी है जिसमे Isaac Newton (25 December 1642 – 20 March 1727) एक APPLE के पेड़ के नीचे बैठे थे और ऊपर से सेब गिरता है। और उसी कौतूहलवश Isaac Newton Law of Gravtity खोज निकालते हैं. अर्थात पृथ्वी के पास गुरुत्वाकर्षण बल है जिससे पृथ्वी की कक्षा मे आने वाली सभी वस्तुए धरती पर गिरती हैं और टिकी रहती हैं।
परंतु एक तथ्य यह भी है की गुरुत्वाकर्षण बल की जानकारी 12वी शताब्दी के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री (Mathematicain & Astronomer) द्वारा उल्लिखित है। जो Isaac Newton से करीब 500 वर्ष पूर्व लिखित है।
भास्कराचार्य- (Bhaskar-2) द्वारा रचित सिद्धान्त सिरोमणि मे गृत्वाकर्षण का उल्लेख मिलता है। जिसकी संकल्पना Isaac Newton से हजार वर्ष पहले की गई थी। हालांकि भास्कर-II से पहले भी गृत्वाकर्षण जैसी किसी शक्ति के बारे मे उल्लेख भास्कर प्रथम तथा ब्रह्मगुप्त (598-670 CE) द्वारा मिलता है परंतु उन्होने इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा अथवा नाम नहीं दिया था।
गुरुत्वाकर्षण एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है – “to Attracted by the Master”
अब देखते हैं की भास्कराचार्य (भास्कर द्वितीय) (12वीं शताब्दी) ने सिद्धान्त सिरोमणि मे Garvity के बारे मे क्या लिखा है-
“पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण वस्तुएँ पृथ्वी पर गिरती हैं। इसलिए, पृथ्वी, ग्रह, नक्षत्र, चंद्रमा और सूर्य इसी आकर्षण के कारण कक्षा में स्थित हैं। गोलाकार पृथ्वी, पृथ्वी के केंद्र में धरणात्मिकं शक्ति के कारण खड़ी रहती है जो पृथ्वी को गिरने से रोकती है और उसे मजबूती से खड़ा रखने में मदद करती है”।
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Surgery/शल्य चिकित्सा विज्ञान और सनातन धर्म
बहुत कम लोग जानते हैं की आधुनिक मेडिकल साइन्स मे Surgery की संकल्पना ईसा से 600 वर्ष पूर्व महर्षि शुश्रुत द्वारा की गई थी।
सुश्रुत संहिता सबसे महत्वपूर्ण प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में से एक है और चरक संहिता के साथ भारत में चिकित्सा परंपरा के मौलिक ग्रंथों में से एक है।
यदि विज्ञान के इतिहास को इसके मूल में खोजा जाए, तो यह संभवतः प्राचीन काल के एक अचिह्नित युग से शुरू होता है। यद्यपि चिकित्सा और शल्य चिकित्सा का विज्ञान आज कई गुना अधिक विकसित हो चुका है, परंतु आज भी प्रचलित कई तकनीकें प्राचीन भारतीय विद्वानों की प्रथाओं से ली गई हैं।
सुश्रुत ने आठ प्रमुखों के तहत शल्य चिकित्सा का वर्णन किया है:
- छेद्या (छांटना), Chedya (excision)
- लेख्य (स्कारीफिकेशन), Lekhya (scarification)
- वेध्या (पंचरिंग), Vedhya (puncturing)
- एस्या (अन्वेषण), Esya (exploration)
- अह्र्या (निष्कर्षण), Ahrya (extraction)
- वसराय (निकासी), Vsraya (evacuation)
- और सिव्या (सूटिंग) Sivya (suturing)
शल्य चिकित्सा के जनक सुश्रुत | Shushrut Is Knows as Father of Surgery.
The Royal Australia College of Surgeons (RACS) सर्जनों को प्रशिक्षित करता है और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सर्जिकल मानकों को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है। इसका उद्देश्य सर्जिकल शिक्षा में उत्कृष्टता की खोज को बढ़ावा देना और बढ़ावा देना है और सक्रिय रूप से अभिनव सर्जिकल अनुसंधान, वंचित समुदायों में सहायता परियोजनाओं, कौशल हस्तांतरण और शिक्षा कार्यक्रमों का समर्थन करता है।
इसकी इमारत में, कुछ सबसे प्रमुख प्राचीन चिकित्सकों में से एक सुश्रता की एक मूर्ति है जिसमें पट्टिका के साथ उन्हें शल्य चिकित्सा के पिता के रूप में उल्लेख किया गया है।
निष्कर्ष:
वैसे तो हजारो उदाहरण मौजूद है हमारे धर्म ग्रंथो मे जिसमे आज की वैज्ञानिक खोजों का जिक्र पहले ही कर दिया गया है। दुर्भाग्यवश हमने प्राचीनतम भाषा संस्कृत को सीखना पढ़ना बंद कर दिया है।
हमारे धार्मिक ग्रंथ वेद उपनिषद सभी संस्कृत भाषा मे होने के कारण जनमानस से दूर हो गए। हिन्दू सभ्यता के ब्रह्मांड ज्ञान को समझने के लिए Americal Astronomer Carl Sagan के Observations को पढ़ना चाहिए।
फलस्वरूप हम अपने ही पूर्वजों द्वारा रचित महान दर्शन शास्त्रों से अनभिज्ञ हैं। उससे भी आश्चर्य की बात यह है की विज्ञान की अधिकतर खोज अंग्रेज़ो के भारत आने का बाद शुरू हुईं। तो क्या यह नहीं माना जाना चाहिए की सनातन ऋषियों मुनियों की खोज को पश्चिमी देशों ने अध्ययन करके ही महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की और उन्ही खोजों को आगे विस्तार दिया?
Therefore it is concluded that Sanatan Dharma is not just a religion it’s beyond that. Its a life science and “Sanatan Dharma is the most Scientific Religion”
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