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    No Cost EMI Real or Fake | क्या No Cost EMI वाकई Interest फ्री होता है?

    Abhishek AryanBy Abhishek AryanNo Comments5 Mins Read
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    No Cost EMI Real or Fake | क्या No Cost EMI वाकई Interest फ्री होता है?
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    No Cost EMI Real or Fake (Reality of Zero Cost EMI): त्योहारों के सीजन मे आपको ई-कॉमर्स कंपनियां, Retail शौरूम्स और shops पर ग्राहकों को लुभाने के लिए नो-कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) का ऑप्शन दिया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक अपनी तरफ आकर्षित किया जाए.

    देश का मध्यम वर्ग इस तरह के offers के लिए लालायित भी रहता है क्यूंकी EMI से व्यक्ति किश्तों मे पैसे देकर समान खरीद सकता है। ऐसे मे No Cost EMI  एक बहुत बड़ी मार्केटिंग तकनीक साबित होती है। आजकल आपको हर जगह Zero % EMI की सुविधा देने का दावा किया जाता है। लेकिन क्या ये सच मे आपको Interest Free EMI मिलती है या इसके पीछे कोई झोल है ??

    Table of Contents

    • What is No Cost EMI? आखिर ये नो कोस्ट ईएमआई होता क्या है?
    • No Cost EMI Real or Fake?
      • 1- डिस्काउंट EMI पर लगने वाले ब्याज के बराबर रखा जाता है
      • 2- प्रॉडक्ट की कीमत मे ही व्याज जोड़ दिया जाता है
      • 3- प्रोसेसिंग फीस

    What is No Cost EMI? आखिर ये नो कोस्ट ईएमआई होता क्या है?

    जब ग्राहक किसी सामान को किस्तों में यानी कि Easy Monthly Installment पर खरीदारी करते हैं, तो ग्राहक को एक तय समय सीमा के अंदर आसान किस्तों मे उस समान की कीमत चुकानी होती है।

    जब कोई सामान किस्तों मे पेमेंट करके खरीदा जाता है तो इसके एवज बैंक या ईएमआई प्रोवाइडर आपसे ब्याज लेता है।

    दूसरी तरफ जब हम नो-कॉस्ट EMI पर सामान लेते हैं तो हमे सिर्फ प्रोडक्ट की कीमत EMI के तौर पर देने होते हैं. इसमें अलग से किसी प्रकार का कोई ब्याज देना नहीं पड़ता है।

    No Cost EMI पर सामान लेने पर 3 या 6 या फिर नौ महीने की मासिक किस्तें बनती हैं। इससे ज्यादा Months का चुनाव करने पर Zero % EMI पर सामान नहीं मिलता। उससे ऊपर ब्याज लगता ही है।

    No Cost EMI Real or Fake?

    आज की युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा ख़रीदारी करती है क्रेडिट कार्ड से या फिर दूसरे ईएमआई विकल्पों द्वारा इसलिए ऐसे ऑफर देकर समान बेचना आसान हो जाता है।

    लेकिन आप सबने एक कहावत जरूर सुनी होगी- “फ्री मे लंच” नहीं मिलता। यानि मुफ्त भोजन जैसा कुछ नहीं होता है।

    तो क्या फ्री ईएमआई/ NO Cost EMI एक छलावा है? चलिये जानते हैं इसके पीछे का गणित-

    No Cost EMI पर रिजर्व बैंक ने 17 सितंबर 2013 को एक सर्कुलर जारी करते हुए कहा था कि, ‘कोई भी लोन ब्याज मुक्त नहीं है.’  क्रेडिट कार्ड के आउटस्टैंडिंग अमाउंट पर जीरो परसेंट EMI स्कीम में ब्याज की रकम की वसूली अक्सर प्रोसेसिंग फीस के रूप में कर ली जाती है. उसी तरह, कुछ बैंक लोन का ब्याज प्रॉडक्ट से वसूल रहे हैं. नो-कॉस्ट EMI दिखने में जीरो इंटरेस्ट का लगता है पर होता नहीं है. ग्राहक को उसे चुकाना पड़ता है पर वो ग्राहक को दिखता नहीं है.

    1- डिस्काउंट EMI पर लगने वाले ब्याज के बराबर रखा जाता है

    ‘नो-कॉस्ट EMI’ के द्वारा दिया गया डिस्काउंट ब्याज के पूरी रकम के बराबर होता है. मान लीजिए, आपने एक मोबाइल फोन खरीदा जिसकी कीमत 20,000 रुपये की है और EMI तीन महीने की है. जिस पर ब्याज पर 15 फीसदी चार्ज किया गया है. तो आपको 3000 रुपये का कुल ब्याज देना पड़ेगा. मोबाइल बेचने वाली कंपनी तो मैन्युफैक्चरर से MRP पर प्रोडक्ट नहीं खरीदती है. कंपनी ने फोन को 16,000 रुपये में लिया होगा. वहीं कंपनी अपने ग्राहक को अपफ्रंट में 20,000 रुपये की कीमत में फोन बेचती है. ऐसे में कंपनी को 4,000 रुपये का फायदा होता है.

    अब बैंक कंपनी को ऐसा कहता है कि अगर कंपनी ग्राहक से प्रोडक्ट की ज्यादा कीमत ग्राहक से कमाना चाहता है तो वो नो-कॉस्ट EMI के विकल्प को लागू करे और उससे हो रहे फायदे का आधा हिस्सा बैंक को दे. ऐसा करने से ग्राहक और कंपनियों दोनो के ही वॉल्यूम में तेजी आती है. इसके कारण ग्राहकों को एक साथ पैसे देने नहीं होते और कंपनियों को इसका फायदा होता है. वहीं बैंक बोलता है कि अब बेचे गए प्रोडक्ट को बेचने के बाद जो फायदा है इसका हिस्सा बैंक को दें. इसमें रिटेलर, बैंक, ग्राहक सभी को एक तरह से फायदा ही होता है.

    2- प्रॉडक्ट की कीमत मे ही व्याज जोड़ दिया जाता है

    नो-कॉस्ट EMI पर प्रोडक्ट को कम डिस्काउंट पर बेचा जाता है। ताकि, उससे ब्याज के बराबर रकम ग्राहकों से वसूल लिया जाए।

    मान लीजिए फोन की असल कीमत 16,000 है लेकिन कंपनी उसे 20,000 में बेच रही है. कंपनी ग्राहक को शो कर रही है कि नो-कॉस्ट EMI ऑफर है और उन्हें अलग से कोई चार्ज EMI पर नहीं देनी होगी. लेकिन,इसी में कंपनी अपने मार्जिन को कमा लेती है और बैंक भी. डिस्काउंट प्रोडक्ट हमेशा ग्राहकों को लुभाने का एक तरीका होता है. कीमत आपको किसी न किसी बहाने से चुकाना ही पड़ता है.

    3- प्रोसेसिंग फीस

    ज़्यादातर नो कोस्ट ईएमआई ऑप्शन देने के एवज मे बैंक आपसे प्रोसेसिंग फी के नाम पर 400 से 800 तक चार्ज कर लेते हैं।

    ये फीस बैंक द्वारा जारी किए गए क्रेडिट कार्ड पर भी लगती और बजाज फ़ाइनेंस जैसे एनबीएफ़सी प्रोसेसिंग फीस के नाम पर ज्यादा पैसे चार्ज करते हैं। दूसरी तरफ अगर आप क्रेडिट कार्ड रखते हैं तो उसकी सालाना Maintenance Fees और पेमेंट delay होने पर Late Fine के साथ साथ ब्याज चार्ज करके बैंक वाले अपना मार्जिन वसूल कर लेते हैं।

    तो यदि आपको कोई पूछे की No Cost EMI Real or Fake? 

    तो आपका जबाव होना चाहिए हाँ ये Fake है क्यूंकी बिना पैसे के आप कोई भी सामान या सर्विस नहीं प्राप्त कर सकते।
    हर चीज की एक निश्चित कीमत होती है और आपको किसी न किसी रूप मे वो कीमत देनी ही पड़ती है।

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    Abhishek Aryan

    An avid blogger with an insatiable thirst for knowledge, I've dedicated the last 9 years to curating enriching content for my readers. Guided by passion and a keen eye for the intriguing, I'm always on the hunt for the next compelling story to share.

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