मणिपुर केस क्या है? : आजकल सुर्खियों मे मणिपुर छाया हुआ है, तरह तरह की खबरे मे News चैनलों और सोसल मीडिया मे घूम रही हैं। मई 2023 मे भीड़ द्वारा दो लड़कियों को निर्वस्त्र परेड करवाने और रेप करने की खबरे सामने आती हैं करीब ढाई महीने बाद। ये शर्मसार करने वाला वाक्या है जिसपर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गहरा दुख व्यक्त किया है। लेकिन लोग जानना चाहते हैं की मणिपुर केस क्या है और मणिपुर मे इतनी दिक्कतें और संघर्ष की असल वजह क्या है?

मणिपुर केस क्या है

मणिपुर सघर्ष के पीछे भौगोलिक परिस्थितियाँ, जमीन के लिए संघर्ष, जातीय समीकरण, अफीम की खेती, राजनीतिक वर्चस्व, पक्षपात जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं। Googal Baba ने इस लेख मे आपको मणिपुर से संबन्धित सारी जानकारी पूरी पारदर्शिता और बिना किसी पूर्वाग्रह से बताने के प्रयास किया है। जानकारी को एकत्र करने के लिए तमाम न्यूज़ पोर्टल्स और खबरों की मदद ली गई है तथा साथ ही साथ विश्वस्त सूत्रों का भी सहयोग लिया गया है।

a reference image of manipur history

मणिपुर का इतिहास क्या है?

मणिपुर उत्तर पूर्वी भारत का एक छोटा राज्य है। मणिपुर काफी प्राचीन राज्य है और इसका इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। महाभारत काल मे द्रौपदी के अलावा अर्जुन की तीन पत्नियाँ थी – सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा। महाभारत आदिपर्व, आश्वमेधिक पर्व के अनुसार वनवास के दौरान अर्जुन जब मणिपुर में थे तो उन्होंने मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा को देखा और उसकी सुंदरता पर मोहित होकर उससे विवाह कर लिया। दोनों के पुत्र का नाम ‘बभ्रुवाहन’ था। मणिपुर को उस काल में नागलोक भी कहते थे। भीम की पत्नी हिडिम्बा आसाम के जनजाति समुदाय की लड़की थी।

मणिपुर के राजवंश

मणिपुर के राजवंशों का लिखित इतिहास राजा पाखंगबा से शुरू होता है। 1819 से 1825 तक यहां बर्मी लोगों ने शासन किया। 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध के बाद मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र संभाल रहे थे। 21 सितंबर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बन गया। मणिपुर का प्राचीन इतिहास मैतेई समुदाय और इसके राजवंशों से जुड़ा हुआ है। 1500 ईसा पूर्व से ही यह समुदाय यहां रहता आया है।

आज का मणिपुर

मणिपुर भारत का एक पूर्वोत्तर राज्य है इसकी राजधानी इम्फाल है. इसके उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम व पूर्व में म्यांमार है. यदि आप मणिपुर की आज की भौगोलिक परिस्थिति देखेंगे तो यह आपको फूटबाल के स्टेडियम जैसा दिखेगा, जिसमे बीच का मैदानी भाग इसकी राजधानी इंफाल है जो की पूरे राज्य का 10% है और बाकी चरो तरफ ऊचे ऊचे पहाड़ हैं। अधिकतर आबादी इंफाल के इर्द गिर्द रहती है और 35 से 45 प्रतिशत लोग पहाड़ों मे रहते हैं जो की राज्य का 90% हिस्सा है।

मणिपुर के 16 जिलों की जमीन इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों के रूप में बंटी हुई है। मणिपुर की धरती पर विविध जातियों और संस्कृतियों का मिश्रण है, जैसे मैतेई, कुकी, नागा, खासी और असमिया आदि। मैतेई यहां के मूलनिवासी हैं जो हिन्दू धर्म का पालन करते हैं। इंफाल घाटी में मैतेई समुदाय के लोग बड़ी संख्‍या में रहते हैं, जबकि पहाड़ी जिलों में नगा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है। नगा और कुकी लोगों ने ईसाई धर्म अपना रखा है।

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मणिपुर मे किस समुदाय के लोग रहते हैं?

मणिपुर राज्य मे चार प्रमुख जातियाँ निवास करती हैं जिसमे मैतेई, कुकी, नगा, ख़ासी और असमियाँ प्रमुख हैं। मणिपुर मे हो रहे संघर्ष मे प्रमुखता मैतेई, कुकी शामिल हैं। मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तकरीबन 33 मान्यता प्राप्त जनजाति निवास करती हैं, जिनमें प्रमुख जनजाति के तौर पर नागा और कुकी जनजाति का नाम लिया जाता है, जो कि ईसाई मजहब को मानती है। इसके अलावा मणिपुर राज्य में 8% आबादी मुसलमानों की और 8% आबादी सनमही समुदायों की है। मणिपुर मे करीब 54% मैतेई और 29% के आसपास कुकी और नगा और 1% अन्य आबादी है।

मैती, मैतेई या मैतई कौन हैं?

मैतेई मणिपुर के मूल निवासी हैं जो मणिपुर मे बहुसंख्यक हैं। मैतेई एक जनजाति समुदाय है और ये लोग हिन्दू संस्कृति का पालन करने वाले लोग हैं। आश्चर्य ये है की करीब 54% की आबादी होने के बावजूद इनके पास मणिपुर का 10% भूभाग ही है और बड़े हिस्से पर दूसरे समुदाय जिसमे कुकी प्रमुख है उसका अधिकार है। मैतेई समुदाय अधिकांश मणिपुर की राजधानी इंफाल मे रहते हैं जो की मैदानी भाग है और यह पूरे मणिपुर का 10 प्रतिशत है। राजनीतिक दृष्टि से देखे तो ज़्यादातर विधायक मैतेई समुदाय से ही आते हैं। मणिपुर का प्राचीन इतिहास मैतेई समुदाय और इसके राजवंशों से जुड़ा हुई है। 1500 ईसा पूर्व से ही यह समुदाय यहां रहता आया है।

कुकी कौन हैं?

कुकी मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति है, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नश्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को वर्मा के पहाड़ी इलाके से ला कर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाया। अब चूंकि इन्हे बसाया की अंग्रेजों ने था तो इन लोगों ने मिसनरियों के प्रभाव मे ईसाई धर्म अपना लिया है। ये मणिपुर के ऊपरी इलाके मे रहते हैं और मणिपुर के क्षेत्रफल का अधिकतर हिस्सा इनके कब्जे मे है, जिसमे ये मैतेई को कभी घुसने भी नहीं देते।

नगा कौन हैं?

मणिपुर मे नगा समुदाय की जनसख्या काफी कम है और ये लोग भी ईसाई धर्म अपना चुके हैं। ईसाई धर्म एक होने के कारण इनका और कुकी का आपस मे तालमेल रहता है और ये भी कुकी की तरह मणिपुर के पहाड़ी हिस्सों मे रहते हैं।

मणिपुर संघर्ष 2023 के प्रमुख कारण क्या हैं?

अप्रैल मई 2023 मे शुरू हुये मणिपुर के जातीय संघर्ष के पीछे कई वजह थी जो इस प्रकार हैं-

१. जमीन और संसाधनों पे वर्चस्व कि लड़ाई

मणिपुर का पहाड़ी इलाका संसाधनो की दृष्टि से काफी प्रचुर है और मैदानी इलाका जो राजधानी के आसपास का है वह केवल राज्य का १०% हिस्सा है। इसी दस प्रतिशत हिस्से पर राज्य की 57% जनता रहती है जो की मूलतः मैतेई समुदाय से हैं और ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। मैतेई राज्य मे बहुमत मे हैं मूल निवासी हैं फिर भी इनके पास जमीन और संसाधन कम हैं। इन्हे अन्य जातीयों की अपेक्षा कम अधिकार प्राप्त हैं। जो की असंतोष का एक महत्वपूर्ण कारण है।

२. मूलनिवासी मैतेई अधिकारों का हनन और पक्षपात

मणिपुर मे ऐसा भी होता है की मैतेई इलाके मे सिर्फ मैतेई समुदाय से जुड़े पुलिस वाले ड्यूटि करते हैं और वे पहाड़ी इलाकों मे नहीं जा सकते और पहाड़ी इलाकों मे सिर्फ कुकी समुदाय से जुड़े पुलिस के लोग ही गस्त लगा सकते हैं। वैसे तो मैतेई राज्य मे बहुसंख्यक हैं और सरकार मे भी उनकी हिस्सेदारी अधिक है इसके बावजूद तुष्टीकरण की राजनीति के चलते नेताओं ने ऐसी पक्षपाती व्यवस्थाएं उत्पन्न की जो की संघर्ष का एक प्रमुख कारण रहा है।

  • राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.
  • मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
  • अपने अस्तित्व का संकट देखकर मैतेई समुदाय भी अपने अधिकारों की मांग करने लगा और यही से संघर्ष उत्पन्न हुआ। कुकी और नगा स्वभाव से हिंसक हैं और उनके पास हथियार भी हैं जिससे वे कानून व्यवस्था को धता बताते हुये अफीम की खेती भी करते हैं और अपने इलाके मे किसी को घुसने भी नहीं देते।
  • एक और सबसे बड़ी जो राजनीतिक दुर्भावना का प्रमाण है वो यह है की कुकी समुदाय जो ईसाई हैं उन्हे ST का दर्जा प्राप्त है जबकि संविधान के अनुसार ST हिन्दू धर्म की एक जाति है और ईसाई समाज मे ऐसी कोई जाति नहीं मिलती। इस एसटी स्टेटस के चलते उन्हे विशेषाधिकार प्राप्त है। और इसी के खिलाफ जब मैतेई समुदाय कोर्ट गया तो कोर्ट ने उनकी दलील को सही पाया और उनके पक्ष मे निर्णय दिया जिसके विरोध मे कुकी और नगा उतर पड़े।

३. अफीम की खेती

अफीम की खेती मणिपुर के पहाड़ी इलाकों मे होती है जहां पर कुकी और नगा का वर्चस्व है, आपको आश्चर्य होगा कि तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है, और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। अफीम कि खेती काफी फायदेमंद होती है और इसकी बड़े पैमाने पर तस्करी भी कि जाती है। इसके कारण भी कुकी और नगा नहीं चाहते कि मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ों मे आने पाएँ।
अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, पर कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें वर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था। क्यों? क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे।

४. मैतेई को ST का दर्जा देने की मांग और Manipur High Court का निर्णय

मैतई संस्था के द्वारा पिछले काफी सालों से इस समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने की मांग की जा रही है जिसके लिए मणिपुर HC मे केस दायर किया गया। इस पर सुनवाई करते हुये मणिपुर हाई कोर्ट के द्वारा राज्य सरकार को 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजाति मामले के मंत्रालय की सिफारिश को प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था।

इस सिफारिश में मैतई समुदाय को जनजाति में शामिल करने के लिए कहा गया था यानि मणिपुर कोर्ट के द्वारा मैतई समुदायों को आदिवासी समुदाय में शामिल करने का आदेश दिया दे दिया गया। जिसके बाद कुकी और नगा समुदाय भड़क उठे और उन्होने इसको अपने अधिकारों के खिलाफ बता दिया।

कुकी संगठन का कहना है कि – मैतई को आरक्षण कैसे दिया जा सकता है जबकि कुकी समुदाय को संरक्षण की जरूरत थी क्योंकि वो बहुत गरीब थे, उनके पास न स्कूल नहीं थे और वो सिर्फ झूम की खेती पर ही जिंदा थे.

मैतेई संगठन का कहना है कि – एसटी का दर्जा सिर्फ नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा नहीं है, बल्कि ये पैतृक जमीन, संस्कृति और पहचान का मसला है. मैतेई संगठन का कहना है कि मैतेई समुदाय को म्यांमार और आसपास के पड़ोसी राज्यों से आने वाले अवैध प्रवासियों से खतरा है। मूलनिवासी होने के बावजूद पूरे राज्ये के 90% हिस्से पर प्रवासी लोगों का कब्जा है जो कि अनैतिक और पक्षपातपूर्ण है।

ऑल मैतेई काउंसिल के सदस्य चांद मीतेई पोशांगबाम का कहना है – कि कुकी म्यांमार की सीमा पार कर यहां आए हैं और मणिपुर के जंगलों पर कब्जा कर रहे हैं. उन्हें हटाने के लिए राज्य सरकार अभियान चला रही है, विरोध कि बड़ी वजह ये है।

निष्कर्ष

उम्मीद करते हैं आप मणिपुर केस क्या है, मणिपुर केस क्या है? मणिपुर हिंसा का कारण, मणिपुर मे कौन से समुदाय रहते हैं? मैतेई कौन हैं? कुकी कौन हैं?, इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको मिल गए होंगे। ये प्रश्न छात्रों को निबंध के रूप मे भी पूछे जा सकते हैं इस लिहाज से भी ये आर्टिक्ल आपके लिए उपयोगी होगा।

मणिपुर हिंसा मे कौन दोषी कौन निर्दोष का प्रश्न गलत है क्यूंकी हिंसा दोनों तरफ से हो रही है। बहस हमेशा हिंसा के मूल कारणों पर होनी चाहिए और उसके उचित समाधान कि तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे कि देश संसाधनों कि क्षति न हो और जान माल का नुकसान होने से बचाया जा सके। किसी भी हिंसा के पीछे असंतोष और पक्षपात बड़ी वजह होती है और यहाँ पर भी ऐसा ही कुछ है।


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