Awadhi Kahawat (Kahawat in Awadhi): अवधी भाषा काफी Interesting है और कई महत्वपूर्ण ग्रंथ और काव्य अवधी मे लिखे गए हैं। कबीर, तुलसी जैसे संत जिन्होने अवधी मे कई महत्वपूर्ण रचनाएँ की है। अवधी भाषा मे कई सारी Awadhi Kahawat और मुहावरे प्रचलित हैं जो शिक्षाप्रद होने के साथ साथ मजेदार भी हैं। वैसे तो बहुत सी कहावतें आपने भी सुनी होंगी लेकिन इस लेख मे हम आपके लिए लाये हैं कुछ चुनिन्दा और बेहतरीन शिक्षाप्रद अवधी कहावतें अर्थ सहित। इसको पढ़कर आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आएगी-

Awadhi Kahawat (Kahawat in Awadhi Language)

“अगहर खेती अगहर मार
अर्थ : अगहर का मतलब अगाड़ी यानि पहले। इस Awadhi Kahawat का अर्थ है की – चाहे खेती हो चाहे मार पीट, जीतेगा वही जो पहल करेगा।


“घर में भूँजी भाँग नहीं, बाहर न्योते सात”
अर्थ : इस Awadhi Kahawat को बहुत इस्तेमाल होता है। जब खासकर जब किसी दोस्त को खाने पर बुला लाओ तब – कहने का अर्थ है “घर में आर्थिक तंगी है, फिर भी बाहर के बहुत से लोगों को खाने पर बुला लिया।”


“चना चबाना और शहनाई का बजाना एक साथ नहीं होता”
अर्थ : दो विरोधाभासी काम एक साथ नहीं किए जा सकते। समकक्ष, रामायण से ‘हँसब ठेठाब, फुलाउब गालू’। ये जबर्दस्त Awadhi Kahawat है जिसका प्रयोग मुहावरे के रूप मे भी होता है।


“गुड़ भरी हँसिया, न खाते बनै न उगलते बनै”
अर्थ : दो विरोधाभासी परिस्थितियों में फँस जाना। समकक्ष, ‘भई गति साँप छछूँदर केरी’।


“पढ़े फारसी बेचैं तेल, यह देखौ कुदरत के खेल”
अर्थ : अच्छे पढ़े-लिखे होने के बावजूद अच्छी नौकरी न मिलना दुर्भाग्य के कारण ही है।


“अढ़ाई चावल अलग पकाना
अर्थ: जब कोई व्यक्ति सदैव अपनी राय या मत औरों से अलग रखता है तो अवधी मे लोग कहते हैं हाँ अपना “अढ़ाई चावल अलगे पकाना” ।


“अध जल गगरी, छलकत जाय”
अर्थ : अल्पज्ञान का व्यक्ति अधिक प्रदर्शन करता है, जैसे गगरी में आधा जल भरा होने पर वह अधिक छलकती है।


“आओ-जाओ घर तुम्हारा, खाना माँगे दुश्मन हमारा”
अर्थ : घर में आने-जाने की छूट है, पर खाना न माँगना। ये घर मे जो निकम्मा लड़का होता है उसके लिए कहा जाता है, आओ जाओ कोई बात नहीं बस खाना मत मांगना


“आगे नाथ न पीछे पगहा”
अर्थ : किसी तरह का बंधन न होना, स्वतंत्र रहना। जानवर को बाधने की रस्सी को पगहा कहते हैं और जो बैल या भैंसे की नाक छेदकर उसको नियंत्रित करने के लिए रस्सी डालते हैं वो है “नाथ”


“आँवे का आँवाँ खराब (बिगड़ा हुआ) है”
अर्थ : पूरा तंत्र ही बिगड़ जाना।


“उठौ बूढ़ा साँस लेव, चकिया छोड़ौ, जांत लेव”
अर्थ : ये काफी ज्यादा प्रयोग की जाने वाली Awadhi Kahawat है इसका मतलब है की काम के बाद कुछ विश्राम पाने के लिए और कठिन काम करने का सुझाव देना।


“उधार का खाना, फूस का तापना एक बराबर”
अर्थ : उधार के पैसे में बरकत नहीं होती, उधार का पैसा देर तक नहीं टिकता। (फूस एक घास होती है जो बड़ी जल्दी जल के बुझ जाती है)


“एक टका मेरी गाँठी, कद्दू खाऊँ कि माटी”
अर्थ : किसी व्यक्ति के पास थोड़े ही पैसे थे और वह असमंजस में था कि अब किस तरह गुजर-बसर हो पाएगा।


“एक तो मियाँ ऊँघते, तिस पर खाई भंग”
अर्थ : एक समस्या पहले से थी, उसको बढ़ाने के लिए दूसरी बड़ी समस्या ले आना।


“एक हाथ ककरी, नौ हाथ बिया”
अर्थ : इस अवधी कहावत मे बिया मतलब बीज, शाब्दिक अर्थ हुआ एक हाथ की ककड़ी मे नौ हाथ का बीज कैसे हो सकता है। भावार्थ – अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन करना, किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताना।


“कबिरा तेरी झोंपड़ी गर कटुअन के पास, जो करैगा सो भरैगा, तू क्यों भया उदास”
अर्थ : कबीरदास बड़े पहुचे हुये दिमाग वाले थे, यह लोकोक्ति कबीरदासजी की रचना है, जिसका अर्थ है कि यदि तेरा निवास दुष्टों के बीच है तो भी तुझे उदास होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल मिलेगा।


“क्या चंदन की चुटकी, क्या गाड़ी भरी काठ”
अर्थ : चंदन की एक चुटकी, काठ की भरी गाड़ी से ज्यादा महँगी है।


“कहने को नन्हीं, खाय जाएँ धन्नी”
अर्थ : कई दुबले-पतले और छोटे व्यक्ति अधिक खुराकवाले होते हैं।


“रानों गावैं आन, भवानों गावैं आन
अर्थ : जो कहा जाए उसका उल्टा ही सुनते या समझते हैं, ऐसी स्थिति में इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है। समकक्ष, ।


“कोठीवाला रोए, छप्परवाला सोए”
अर्थ : धनवान व्यक्ति प्रायः धन की चिंता से ग्रस्त रहते हैं, जबकि निर्धन व्यक्ति चैन से सोता है, क्योंकि उसे किसी वस्तु के खोने का डर नहीं रहता।


“खरी मजूरी, चोखा काम”
अर्थ : इस Awadhi Kahawat का मतलब है कि यदि मजदूरी ठीक मिलती है तो काम भी ठीक होना चाहिए।


“खाय चना, रहै बना”
अर्थ : लोकोक्ति का अर्थ है कि चने के व्यंजन खाने से तंदुरुस्ती बनी रहती है।


“खाय मूँग, रहै ऊँघ”
अर्थ : मूँग खाने से पेट को आराम मिलता है और नींद आ जाती है।


“गँजेड़ी यार किसके, दम लगा के खिसके”
अर्थ : गाँजा या चरस पीनेवाले किसी के दोस्त नहीं होते, वे चरस की दम लगाकर निकल लेते हैं। इसी तरह स्वार्थी लोग अपना काम निकल जाने पर दूर हो जाते हैं।


“गुड़ दिए मरै तो विष क्यों दे”
अर्थ : यदि मीठी बातों से ही काम बन जाता हो तो हिंसक होने की क्या आवश्यकता है?


“गुड़ न देय, गुड़ जैसी बात तौ करै”
अर्थ : यदि कोई कुछ दे नहीं सकता तो वह बात तो मीठी कर ही सकता है।


“चना महीना, घूँसा रोज”
अर्थ : इस मुहावरे के पीछे की कहानी यह है कि किसी नौकर की मजदूरी तय हुई कि उसे महीने बाद चना दिया जाएगा, पर उसे घूँसे रोज मिलेंगे। अर्थात् प्रताड़णा की स्थिति में नौकरी करना।


“घर की खांड किरकिरी, चोरी का गुड़ मीठा”
अर्थ : घर का खाद्य पदार्थ अच्छा नहीं लगता, चुपके से चुराया फल/सामान अच्छा लगता है (संभवतः साहसिकता के कारण)। प्रायः मुहावरे का दूसरा भाग ही प्रयोग किया जाता है।


“छलनी में दूध दुहै, करम को दोष”
अर्थ : स्वयं की अयोग्यता होने पर भाग्य को दोष देना।


“जने कोई, मखाना गोंद खाय कोई”
अर्थ : बच्‍चा कोई पैदा करे और मखाना-गोंद के पकवान कोई और खाए। अर्थात् काम कोई करे और फल कोई और खाए।


जब दाँत थे, तब चना नहीं। जब चना है, तब दाँत नहीं।।
अर्थ : ये बड़ी ही वास्तविकता वाली Awadhi Kahawat है। जब किसी सामग्री का उपयोग कर सकते थे तो वह उपलब्ध नहीं थी और जब सामग्री उपलब्ध है तो उसका उपयोग नहीं कर सकते। ऐसी स्थितियों में इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है।


“जब भुईं लोट चले पुरवाई, तब जान्यो बरखा रितु आई”
अर्थ : यह Awadhi Kahawat एक लोकोक्ति है जो घाघ की उक्तियों से ली गई है, जिसमें वर्षा ऋतु के आगमन की बात कही गई है। जब पूरब से आर्द्रता लिये हुए भारी हवा जमीन छूती हुई चले तो समझो कि वर्षा ऋतु का आरंभ हो गया है।


“जहाँ देखें तवा परात, वहीं नाचें सारी रात”
अर्थ : जहाँ भोजन का प्रबंध हो, वहाँ बहुत से लोग गाने-बजाने के लिए तैयार रहते हैं।


“डोली में बैठकर, उपले लेन गए हैं”
अर्थ : ये कहावत तो बुजुर्ग लोग लड़को पे मार ही देते हैं, क्यूंकी हम छोटे छोटे काम के लिए बाइक उठा लेते थे और तभी ये कहावत गिरती थी- छोटे से सामान लाने के लिए बड़े वाहन का उपयोग करना।


“दस की लाठी, एक जने का बोझ”
अर्थ : इस Awadhi Kahawat का अर्थ हुआ – छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ मिलकर एक आदमी के लिए बड़ी समस्या बन जाती हैं। जैसे दस लोगों कि लाठी एक ही आदमी को उठानी पड़े तो बोझ ही है।


कुछ बड़े काम की Awadhi Lokoktiyan (अवधी लोकोक्तियाँ)

Awadhi Kahawat के अलावा कुछ लोकोक्तियाँ भी बड़ी मजेदार और काम ही हैं जो समाज मे प्रचलित है। कुछ चुनिन्दा यहाँ दी जा रही हैं –

“थाली फूटी-न-फूटी, झंकार सबने सुनी”
अर्थ : घर में कलह होने पर बँटवारा न भी हुआ, फिर भी बदनामी तो हुई ही।


दिन का बद्दर रात निबद्दर, औ पुरवैया चलै भद्दर-भद्दर। घाघ कहैं कछु होनी होई, कुवाँ के पानी धोबी धोई।।
अर्थ : इस लोकोक्ति में मौसम के बारे में जानकारी दी गई है कि जब दिन में बादल हों और रात में बादल न रहें तथा पूरब की हवा धीरे-धीरे चलती रहे तो घाघ कवि (कृषि आचार्य पंडित रक्षा राम तिवारी) के अनुसार वर्षा बहुत कम होगी, यहाँ तक कि तालाब भी सूखे रहेंगे और धोबी कुएँ के पानी से कपड़े धोएगा।


“करु बहियाँ बल आपनी, छाँड़ बिरानी आस। जाके आँगन है नदी, सो कस मरै पियास”
अर्थ : स्वयं में ताकत पैदा करनी चाहिए, जिससे अपनी जरूरतें पूरी हो सकें, दूसरों से आशा नहीं रखनी चाहिए। जिसके घर में नदी है, वह प्यासा नहीं रहता। अर्थात् दूसरों की संपन्नता से आशा नहीं रखनी चाहिए, स्वयं पर भरोसा रखना चाहिए।


“करिया बादर जिव डरवावै, भूरा बादर पानी लावै”
अर्थ : ये Awadhi Kahawat बरसात के दिनों मे काफी बोली जाती है। काला बादल सिर्फ डराता है बरसता नहीं, जबकि भूरा बादल जो है वो बरसता है। इस लोकोक्ति द्वारा मौसम संबंधी जानकारी दी गई है जो कि सही है।


“इहाँ कुम्हड़ बतिया केयु नाहीं, जो तर्जनी देखि मरि जाहीं”
अर्थ : यह लोकोक्ति रामायण से ली गई है, जिसका संदर्भ धनुष टूटने के बाद परशुराम के क्रोध का लक्ष्मण द्वारा जवाब है कि यहाँ कोई कद्दू की बतिया जैसा नहीं है, जो पहली उँगली देखते ही मर जानेवाला हो। अर्थात् यहाँ कोई धमकियों से डरनेवाला नहीं है। ऐसी स्थिति में इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है। इस awadhi kahawat के पीछे वजह ये है की कहते हैं की – कद्दू मे जब फल लग रहा हो उसको उंगली से छू देने पर वो सूख जाता है बढ़ता नहीं।


“उत्तम खेती, मध्यम बान, निषिध चाकरी, भीख निदान”
अर्थ : इस लोकोक्ति का अर्थ है कि विभिन्न कार्यों में खेती सर्वोत्तम है, वाणिज्य मध्यम श्रेणी में, नौकरी निकृष्ट श्रेणी में तथा भीख माँगना अंतिम विकल्प है।


“जब भुईं लोट चले पुरवाई, तब जान्यो बरखा रितु आई”
अर्थ : यह Awadhi Kahawat एक लोकोक्ति है जो घाघ की उक्तियों से ली गई है, जिसमें वर्षा ऋतु के आगमन की बात कही गई है। जब पूरब से आर्द्रता लिये हुए भारी हवा जमीन छूती हुई चले तो समझो कि वर्षा ऋतु का आरंभ हो गया है।


“न न कहे जांय, परात भर लिहे जांय”
अर्थ : इनकार करते हुए भी बहुत सा सामान लिये जाना। समकक्ष, मन मन भावै, मूड़ हिलावै।


“पतीली से एक ही चावल देखा जाता है”
अर्थ : पतीली से एक ही चावल देखा जाता है कि चावल पका या नहीं। अर्थात् किसी समूह के एक-दो लोगों की जाँच समूह के गुण-दोष जानने के लिए काफी है।

मौसम से जुड़ी Awadhi Kahawat

कुछ अवधि कहावतें लोकोक्तियाँ ऐसी होती हैं जो मौसम का हाल बताने के लिए प्रयोग की जाती थी। इसने लोग आसानी से समझ लेते थे: चलिये देखते हैं मौसम से जुड़ी Awadhi Kahawat

“बोलै लोखड़ी, फूलै कास। अब नहीं बरखा की आस॥
अर्थ: शरद ऋतु आते ही लोमड़ी सुबह-सुबह बोलने लगती है तथा कासा फूलने लगता है। यह दोनों लक्षण इंगित करते हैं कि अब वर्षा समाप्तप्राय है।


“भादौं का झेला, एक सींग सूखा, एक गीला
अर्थ: भादो के महीने में बारिश रुक-रुक कर, अलग-अलग जगहों पर होती है।


“माघ का जाड़ा, जेठ की धूप
अर्थ: माघ का जाड़ा और जेठ की धूप बहुत कठिन होती है।


“माघ नंगे, बैसाख भूखे
अर्थ: माघ में वस्त्र न होना और बैसाख में जब फसल कटती है तो भूखे रहना, विपन्नता की निशानी है।


माघ पूस की बादरी और कुवारा घाम, इनसे जौ ऊबरै तौ करै पराया काम।
अर्थ : इस लोकोक्ति में यह बताया गया है कि माघ पूस में बादल होने पर अत्यधिक ठंडक होती है, इसी तरह कुवार मास की धूप काफी तेज होती है (वर्षा ऋतु के बाद वातावरण स्वच्छ हो जाने के कारण)। यदि कोई इन दोनों विषम परिस्थितियों से निपट ले तो दूसरों का काम करना।


“सूकै केरी बादरी रही सनीचर छाय, भड्डर कहैं बिचार के बिनु बरसे ना जाय”
अर्थ: शुक्रवार को बादल आएँ और वह शनिवार तक छाए रहें तो भड्डर कवि के अनुसार वर्षा अवश्य होगी।

जीवन की वास्तविकता से जुड़ी कुछ अवधी कहावतें

कुछ Kahawat in Awadhi हमे जीवन की वास्तविकता बताती हैं और इस सेक्शन मे हमने कुछ ऐसी ही कहावतों को शामिल किया है। चलिये देखते हैं –

“भरी जवानी, माँझा ढील
अर्थ: जवानी में भी शरीर चुस्त न रहना (माँझा पतंग की डोर को कहते है)


“रुपया टूटा और भेली फूटी, फिर नहीं रुकती
अर्थ: रुपया के फुटकर होते ही तथा गुड़ की भेली फूटते ही जल्दी समाप्त हो जाते हैं।


“सदा न फूलै तोरई, सदा न सावन होय। सदा न जोवन ठहर रहे, सदा न जीवै कोय।।
अर्थ: इस Awadhi Kahawat /लोकोक्ति के अनुसार तोरई हमेशा नहीं फूलती और न हमेशा सावन रहता है, इसी तरह न यौवन हमेशा रहता है और न ही कोई हमेशा जिंदा रहता है। अर्थात् समय एक जैसा नहीं रहता है, समय परिवर्तनशील है।


“ससुरार सुख कै दुआर, जो रहै दिना दुइ चार। जो रहै एक पखवारा, तौ हांथ म खुरपी बगल म खारा”
अर्थ: इस लोकोक्ति का अर्थ है कि दो-चार दिन रहने के लिए ससुराल बहुत सुखद स्थान है। यदि वहाँ कोई एक पक्ष (दो सप्ताह) रहता है तो उसे घास काटने के लिए खुरपी और खारा (एक जालीदार रस्सी, जिसमें घास भरकर लाई जाती है) पकड़ा दिया जाता है। अर्थात् ससुराल या अन्य रिश्तेदारी में अधिक दिन रहना उचित नहीं है।


“सावन हरे न भादौं सूखे”
अर्थ: एक ही जैसी स्थिति में रहना, सुख-दुःख में समभाव रहना। सर्वहारा की स्थिति में किसी उन्नति की संभावना का न होना।


“सूप बोलै तो बोलै, चलनी काहे बोलै जामें बहत्तर छेद”
अर्थ : कम अवगुणी व्यक्ति दोष निकाले तो ठीक है, पर अत्यंत अवगुणी व्यक्ति भी दूसरे के दोष निकालने लगे तो नहीं चलेगा (स्वीकार्य नहीं)। ऐसी स्थिति में इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है।


“जौन रही हंसिया मा धार, वहू क लैगें भगन लोहार”
अर्थ: किसी चीज में थोड़ी बहुत जो विशेषता थी भी, वह भी किसी अन्य नौसिखिये के कारण समाप्त हो जाने पर इस Awadhi Kahawat या मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण- हसुवा काटने का एक औज़ार होता है, हसुवा मे जो थोड़ी बहुत धार बची थी वो नौसिखिये भगन लोहार ने और बर्बाद कर दिया)

Kahawat in Awadhi Conclusion

हम अपने इस आर्टिक्ल Awadhi Kahawat को समय समय पर Update करते रहते हैं। आपको इनमे से कौन ही अवधी कहावत सबसे मजेदार लगी कमेंट करके जरूर बताएं। ऐसी कोई और भी Awadhi Kahawat जो आपकी नजर मे हो, और हमने यहाँ पर न लिखी हो, तो भी हमे जरूर शेयर करें। इस आर्टिक्ल का अर्थ आपको भारत की जो परंपरा है बड़ी बड़ी बातों को छोटी छोटी कहावतों और लोकोक्तियों के माध्यम से बताने की उससे परिचित करवाना। इन अवधी कहावतों को प्रयोग करके अपनी बात को मजेदार और चुटीले अंदाज मे रख सकते हैं। और लोग की आपकी बातों मे रुचि लेंगे। यहाँ तक बने रहने के लिए आभार-

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RJ Yaduvanshi, a prolific writer with a passion for history, sociology, and socio-political matters, has been captivating readers for the past 12 years. His insightful and thought-provoking writings have graced various platforms like Quora, Wikipedia, shedding light on the intricacies of the human experience and our shared history. With a profound understanding of the social fabric, RJ Yaduvanshi continues to contribute to the world of literature and knowledge.

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