चर्चा मे है Khalistan Movement, इसके बारे मे सबने थोड़ा बहुत सुना होगा, कुछ मीडिया से, कुछ नेताओं से कुछ सोश्ल मीडिया से। लेकिन हम मे से ज़्यादातर लोगों को Khalistan Movement की सच्चाई नहीं मालूम है। इसकी शुरुवात कैसे हुई कौन लोग इस साजिश मे शामिल हैं। क्या भारत विरोधी तत्वों का हाथ है इस तरह के Movement को चलाने मे। आप इस आर्टिक्ल को पढ़ने के बाद खलिस्तान मूवमेंट क्या है? इसके पीछे कौन है? सब कुछ आपको जानने को मिलेगा इस आर्टिक्ल मे।
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Beginning of Khalistan Movement (खलिस्तान मूवमेंट की शुरुवात कैसे हुई?)
खलिस्तान की मांग और इसके पीछे की सारी वजह को सिलसिलेवार तरीके से समझने के लिए हमे इतिहास मे थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। वर्ष 1823 में जब पंजाब और सिंध पर महाराजा रणजीत सिंह का शासन था। जिसे सिख empire के नाम से जाना जाता है। उस समय आज के भारत मे स्थित पंजाब और पाकिस्तान मे स्थित पंजाब तथा सिंध प्रदेश पर महाराजा रणजीत सिंह का शासन हुआ करता था जिसमे पेशावर, लाहौर पूरा कश्मीर भी शामिल था। लेकिन हरयाणा सिख साम्राज्य का हिस्सा कभी नहीं रहा। जब तक महाराजा रणजीत सिंह का शासन रहा अंग्रेजों ने पंजाब प्रांत का कभी आक्रमण नहीं किया।
लेकिन महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु (27 जून 1839, उम्र 58) के पश्चात सिख साम्राज्य कमजोर पड़ गया और अंग्रेजों ने मौका देखकर इसे अपने नियंत्रण मे ले लिया। साथ ही साथ हरयाणा को भी सिख एंपायर मे जोड़ लिया। अंग्रेजों के सामने महाराजा रणजीत सिंह के बेटे भविष्य मे दुविधा ने बने इसलिए उन्होने उनके पुत्रों को पढ़ाई करवाने के बहाने लंदन भेज दिया ताकि कोई चुनौती देने वाला न रहे।
इसके बाद वहाँ के सबसे पवित्र गुरुद्वारा जो Golden Temple के नाम से जाना जाता है उसका नियंत्रण अंग्रेजों ने वहाँ के लोकल महंत (Priest) लोगों को दे दिया। जिनको अंग्रेजों का संरक्षण प्राप्त था।
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1920 Akali Movement (सिखों का विरोध और अकाली मूवमेंट)
ये जो सिख गुरुद्वारे का नियंत्रण महंतों को दिया गया था अंग्रेजों को वो सिखों को पसंद नहीं था इसलिए सिखों ने विरोध स्वरूप 1920 मे अकाली मूवमेंट शुरू कर दिया। अंग्रेजों पर दबाव इतना ज्यादा बनाया गया की अंत मे 175 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई जिसका नाम रखा गया- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी। जिसे आज हम SGPC के नाम से जानते हैं।
175 सदस्यों की सिख “शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी (SGPC)” का गठन 16 नवम्बर 1920 को किया गया और सुंदर सिंह मजीठिया को समिति का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
एसजीपीसी की शुरुआत किसने की?
अकाली दल और SGPC
SGPC के गठन के बाद गुरुद्वारों के प्रबंध का जिम्मा महंतों से वापस ले लिया गया और एसजीपीसी के नियंत्रण मे गुरुद्वारों की देखरेख शुरू हुई जो आज भी चलती है और SGPC का बकायदा चुनाव प्रक्रिया के अंतर्गत अध्यक्ष चुना जाने लगा।
चूंकि अकाली मूवमेंट से एसजीपीसी का जन्म हुआ इसलिए 1920 से आज तब एसजीपीसी और अकाली दल अच्छा तालमेल रहता है। अंग्रेजों ने जो सीख एंपायर पे कब्जा किया हुआ था उसे सिख community temporary मानती थी और उन्हे भरोसा था की जब अंग्रेज़ यहाँ से जाएंगे तब हमे हमारा Sikh Empire वापस मिल जाएगा। अभी तक Khalistan या khalistan Movement जैसे किसी भी शब्द का ईजाद नहीं हुआ था, बात सिर्फ सिख एंपायर की थी।
भारत विभाजन और स्वतंत्र सिख राज्य का सपना
ये जो सोच सिख समुदाय मे मन मे थी की Britishers हटेंगे तो हमे सिख एंपायर या स्वतंत्र सिख स्टेट हमे मिलेगा उसको पहला झटका लगा 1929 मे। 1929 वही साल था जब मोतीलाल नेहरू (पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के पिता जी) ने पूर्ण स्वराज्य मूवमेंट की शुरुवात की।
पूर्ण स्वराजय मूवमेंट मे यह कहा गया की भारत एक आज़ाद राष्ट्र बनेगा जिसमे लोकतन्त्र होगा और चुनाव के द्वारा पूरे देश का एक प्रधानमंत्री चुना जाएगा। अब सिख कम्यूनिटी इस सोच मे थी जब देश आज़ाद होगा तो उन्हे सिख एंपायर मिलेगा इसलिए पूर्ण स्वराज्य मूवमेंट से सिख समुदाय को थोड़ी सी निराशा जरूर हुई थी हालांकि कोई उसके विरोध मे नहीं था।
1946 मे जब बात शुरू हुई की अंग्रेज़ अब जाएंगे तब सिखों ने अपनी आवाज उठाई की अंग्रेजों ने धोखे से पंजाब हमसे छीना था इसलिए पंजाब सिखों को वापस मिलना चाहिए। लेकिन अंग्रेजों ने कहा की पहले क्या था उस आधार पर फ़ैसला नहीं होगा बल्कि फैसला इस आधार पर होगा की जनसख्या का अनुपात क्या है।
1941 की जनगणना के अनुसार– पंजाब प्रांत मे मुस्लिम 53%, हिन्दू 30% और सिख 15% के आसपास थे। और पूरे भारत की दृष्टि से देखा जाए तो पूरे भारत मे उस समय सिखों का जनसंख्या अनुपात केवल 1% था। इस आधार पर सिख किसी प्रकार के Negotiation की स्थिति मे थे नहीं।
जनसंख्या मे कम होने के कारण सिखों ने United India के साथ जाने का फैसला किया। उन्हे भारत के साथ रहने मे किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन वह यह भी कहीं न कहीं चाहते थे की उन्हे एक अलग राज्य मिले।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ सिखिस्तान शब्द का उदय
उधर 1945 और 1946 मे मुस्लिमों ने जनसख्या के हिसाब से अपना अलग देश मांग लिया। इस बात से सिख community बिलकुल खुश नहीं थी क्यूंकी वो जानते थे की पंजाब मे मुस्लिम आबादी ज्यादा है और बंटवारा हुआ तो सिखों के हाथ से पंजाब हमेशा के लिए चला जाएगा। इसलिए सिखों ने कहा की हमे यूनाइटेड इंडिया के साथ जाना है, लेकिन देश का बंटवारा हुआ तो हमे भी “सीखिस्तान” चाहिए। यहाँ पर पहली बार सिखिस्तान शब्द सामने आता है।
उनका कहना था की “यदि बंटवारा हुआ तो मुस्लिम को पाकिस्तान मिल जाएगा हिंदुओं को हिंदुस्तान मिलेगा और सिखों को क्या मिलेगा? इसलिए शिरोमणि अकाली दल एक प्रस्ताव पारित किया की “सिखों को United India के साथ रहने मे कोई परेशानी नहीं है लेकिन यदि देश का बंटवारा हुआ तो उंन्हे भी सिखिस्तान चाहिए”
सिखिस्तान की मांग
1946 मे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सिखो के लिए विशेष प्रावधान रखने की बात कही और कहा की इसमे कुछ भी गलत नहीं है की सिखो के लिए एक स्थान हो जहां पर वह अपनी धार्मिकता के हिसाब से आज़ादी का अनुभव कर सकें। इस वक्तव्य को लेकर कई बार आरोप लगते हैं की जवाहर लाल नेहरू ने सिखो से वादा करके धोखा दिया।
भारत विभाजन और पंजाब का बंटवारा
इन सब बातों के बीच मे भारत विभाजन जिन्ना और नेहरू द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। और इस बँटवारे का सबसे बड़ा नुकसान सिख समुदाय को होता है। क्यूंकी पंजाब की जनसंख्या का 55% और पंजाब की जमीन का 62% हिस्सा पाकिस्तान मे चला जाता है। सिखों की महत्वपूर्ण विरासतें गुरुद्वारे और काफी संपत्ति पाकिस्तान मे चली जाती है।
और बँटवारे की वजह से उत्तर मे पंजाब के सिखों और हिंदुओं को भारी हिंसा का सामना करना पड़ता है और पश्चिम मे बंगाल के हिन्दुओ को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। 62% हिस्सा पंजाब का जो पाकिस्तान मे चला गया वहाँ से लोगों को पलायन करके यहाँ आना पड़ा। बँटवारे मे मुस्लिमों का भी नुकसान हुआ लेकिन सिखों और हिंदुओं की अपेक्षाकृत कम रहा।
पंजाब मे सिखों की मेजॉरिटी
बँटवारे से उत्पन्न स्थिति के बाद पाकिस्तान वाले पंजाब से बहुत से सिख भारत वाले पंजाब मे आ गए और यहाँ पर सिख धीरे धीरे मेजॉरिटी मे आ गये। अब जो है सिखों के अलग राज्य यानि सिखिस्तान का सपना पूरे होने के आसार फिर से सिख समुदाय को नजर आने लगे लेकिन ये इतना आसान नहीं था। यहाँ तक Khalistan Movement या इस शब्द का जिक्र नहीं आया है सिर्फ सिखिस्तान की बात हो रही है वह भी एक अलग राज्य की।
Punjabi Sooba Movement 1955
आज़ादी से पहले सिखों का ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय पर वर्चस्व था जो की आज़ादी के बाद से कम हुआ, इसके अलावा सेना मे भर्ती के लिए भी सिखों को Preference दिया जाता था उसे भी सरकार ने थोड़ा कम किया जिससे सिखों मे थोड़ी नाराजगी थी। इसके बाद पिक्चर मे आता है पंजाबी सूबा मूवमेंट- भारत सरकार ने कुछ समय के लिए सिख बहुल इलाकों को मिलकर कुछ समय के लिए पंजाबी सूबा दिया था जिसका नाम था – Patiala and East Punjab State Union (PEPSU). बाद मे अकाली दल की बढ़ती पावर को देखकर कॉंग्रेस ने इसे हटा दिया-
State Reorganization Act 1956
1956 मे सरकार एक एक्ट लेकर आती है जिसका मकसद था भाषा के आधार पर राज्यों का एकीकरण यानि जिस राज्य मे जो भाषा प्रचलित है उसके आधार पर राज्य का निर्धारण- जैसे तेलुगू भाषी प्रांत को मिला -आंध्रा प्रदेश, मराठी भाषी प्रदेश को मिला- महाराष्ट्र। इससे प्रेरित होकर सिख कम्यूनिटी का कहना था की पंजाब मे पंजाबी बोली जाती है अधिकतर लिटरेचर पंजाबी भाषा मे है इसलिए हरयाणा को अलग करके हमे पंजाबी प्रदेश मिलना चाहिए जो सिखों के लिए हो जिसकी आधिकारिक भाषा पंजाबी हो। लेकिन सरकार ने इस मांग को पूरी तरह से नकार दिया।
यही से नीव पड़ती है पंजाबी सूबा आंदोलन की – और यहाँ से चीजें खराब होनी शुरू हुईं लेकिन Khalistan या Khalistan Movement अभी भी पिक्चर मे नहीं था कहीं भी।
Akali Leader Master Tara Singh
घटनाक्रम को देखते हुये अकाली लीडर तारा सिंह ने कहा की अब पानी सर के ऊपर से जा रहा है ये सब तभी ठीक होगा जब हमे अलग प्रांत मिलेगा और हमे अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा। ये राजनीतिक बयान था और इसके बाद पंजाब मे हिन्दू सिख के बीच छोटी मोटी झड़पें भी हुई।
मास्टर तारा सिंह का कहना था की सिख धर्म तभी बचेगा जब पंजाबी सूबा सिखों को मिलेगा। यहा से आंदोलन अधिक तेजी से फैलना शुरू हो गया और सरकार ने -पंजाबी सूबा और इससे जुड़े स्लोगन बोलने पर भी पाबंदी लगा दी। 1955 में 12000 और 1960-61 में 26000 सिखों को उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के लिए गिरफ्तार किया गया था। 1955 मे पहली बार पुलिस गोल्डेन टैम्पल मे घुसती है। 1964 तक ऐसे ही चलता है कई अकाली नेता गिरफ्तार हुये मास्टर तारा सिंह का आमरण अनसन हुआ और कई आंदोलन होते रहे।
1965 भारत पाकिस्तान युद्ध और पंजाब का बंटवारा
इन सब घटनाक्रम के बीच भारत पाकिस्तान का प्रथम युद्ध शुरू हो गया जिसमे सिख समुदाय ने बिना शर्त सारे आंदोलन खत्म करके भारत का साथ दिया और देश ने सिखों के पराक्रम और देशप्रेम को जाना। सिख समुदाय के लिए लोगों के लिए देश के आमजन मे सम्मान बढ़ा और उनकी मांगो को लेकर समर्थन भी प्राप्त होने लगा।
अंततः सरकार को झुकना पड़ा और 1966 मे सिख समुदाय की मांग को मानकर पंजाब को तीन राज्यों मे बाँट दिया गया – हिन्दी भाषी क्षेत्र को हरयाणा, पहाड़ी क्षेत्र को हिमाचल और पंजाबी क्षेत्र को पंजाब बनाया गया। चंडीगढ़ पर विवाद था चूंकि यहाँ पर 55% हिन्दी भाषी लोग थे तो चंडीगढ़ को यूनियन Territory के अंतर्गत रखा गया और कहा गया की इसे हरयाणा और पंजाब दोनों share करेंगे। लेकिन सिख कम्यूनिटी इसपर पूरी तरह संतुष्ट नहीं थी।
Punjab Division 1966
Anandpur Sahib Resolution 1973
1973 मे शिरोमणि अकाली दल ने एक स्टेटमेंट पेश की जिसमे सिखों की तरफ से कुछ मांग राखी गई भारत सरकार के समक्ष, जिसे Anandpur Sahib Resolution के नाम से जाना जाता है। अनंतपुर साहिब रेसोल्यूशन पंजाब मे काफी पोपुलर हुआ इसमे सिखों की कई पुरानी मांगे (और कुछ नई मांगे) दोहराई गई थी जो आपने अब तक ऊपर के घटनाक्रम मे जाना।
- चंडीगढ़ की पंजाब मे वापस शामिल कराना
- हरियाणा और पंजाब के बीच पानी के बँटवारे का समाधान निकाला जाए, और पंजाब के हिस्से का पानी पंजाब को मिले।
- पंजाब मे केंद्र सरकार का दखल का होना चाहिए। क्यूंकी आरोप यह भी लगता रहा की अकाली दल पंजाब मे कई बार जीतकर आया सरकार बनाई लेकिन सरकार चल नहीं पाई। और सरकार गिराने का आरोप लगा कॉंग्रेस पर इसलिए वो चाहते थे की पंजाब को अधिक स्वायतता मिले और केंद्र सरकार का दखल राज्य मे कम हो।
- सेना मे सिख कोटा बढ़ाया जाए।
- सिख धर्म को हिन्दू धर्म से अलग मान्यता दी जाए।
- इसके अलावा सिख धर्म से जुड़े कुछ प्रशासनिक निर्णय शामिल थे Anandpur Sahib Resolution मे।
- लेकिन इसमे कहीं से भी पंजाब को अलग देश बनाने का कोई जिक्र नहीं था।
बाद मे नेताओं ने इस रेसोल्यूशन का प्रयोग धर्म की आँड़ लेकर अपनी राजनीति साधने के लिए किया। Anandpur Sahib Resolution पंजाब मे काफी पोपुलर हुआ, यहाँ तक की अकाली दल ने काँग्रेस को हराकर सत्ता हासिल कर ली। कुछ लोग तो यह भी कहने लगे की अनंतपुर साहिब Resolution मे अलग देश की मांग की गई है जो की बिलकुल निराधार और राजनीतिक टिप्पणी थी। विवाद जब बढ़ा तो संत हलचल सिंह लोङ्गेवाला ने Resolution की एक कॉपी लोकसभा को और एक कॉपी राज्यसभा को इसलिए भेजी ताकि ये साफ हो सके की इसमे कहीं भी पंजाब को अलग देश बनाने का जिक्र नहीं है। और जो भी ऐसा कह रहा है वो गलत कह रहा है।
सिख समुदाय के लोग अपने धर्म के लिए काफी sensitive हैं और ब्रिटिश सरकार भी उन्हे turban (पगड़ी) पहनने से नहीं रोक पाई थी। इसलिए पंजाब मे धर्म के नाम पर राजनीति करना एक आसान और टिकाऊ ट्रेंड बनता गया। हर कोई कम्यूनिटी को लुभाने के लिए अजेंडा तैयार करने लगा। और यही वजह रही की इस समय तक Khalistan Movement या खालिस्तान शब्द की सुगबुबाहट शुरू हो चुकी थी।
जरनैल सिंह भिंडरवाला की एंट्री और Khalistan Movement
उधर Anandpur Sahib Resolution के बाद अकाली दल की ताकत काफी बढ़ी और वो सत्ता मे आ गए। इस बात से काँग्रेस काफी बेचैन हो उठी, उसको तलाश थी एक ऐसे चेहरे की जो अकाली दल से ज्यादा धार्मिक दिखे ताकि सिखों का वोट काँग्रेस को मिल सके। और यही खोज Khalistan Movement की वजह भी बनी जो आप आगे जानेंगे।
दमदमी तक्साल Sikh Madarsa
दमदमी तक्साल नाम की एक रूढ़िवादी सिख संस्था थी इसे आप सीख मदरसा भी कह सकते हैं, जो मोगा तहसील के भिंडर गाँव मे थी, इस वजह से यहा के लोगों को भिंडरवाले कहा जाता था। दमदमी तक्साल संस्था के लीडर करतार सिंह भिंडरवाले की मृत्यु के बाद नए लीडर बने जरनैल सिंह बराड़ लोग इनको संत जरनैल सिंह भिंडरवाले के नाम से बुलाते थे।
लीडर बनते ही संत जरनैल सिंह भिंडरवाले ने गाँव गाँव जाकर नशे के खिलाफ मुहिम चलाई, लोगों से केश न कटवाने की अपील की और सीख धर्म के पाँच नियम पालन करने को कहा। लोग अपनी समस्याएँ लेकर संत जरनैल सिंह भिंडरवाले के पास आने लगे और ये उनका समाधान किया करते थे। दरअसल ये मॉडर्न सिखों का मज़ाक भी उड़ाते थे और कट्टर सिख माने जाते थे।
भिंडरवाले का नाम पूरे पंजाब मे प्रचलित हो गया था और इन सबके बीच काँग्रेस के ज्ञानी जैल सिंह जी और दरबारा सिंह ने संजय गांधी को बताया संत जरनैल सिंह भिंडरवाले के बारे मे बताया की ये पंजाब मे काफी Famous चेहरा है। अगर हम इसको पंजाब मे काँग्रेस का फ्रंट फ़ेस बनाते हैं तो हमे काफी फायदा होगा। काँग्रेस ने इसकी पोपुलरिटी देखकर कॉंग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडरवाले को अकाली दल के खिलाफ SGPC के चुनाव मे खड़ा कर दिया और केंद्र सरकार से सपोर्ट की वजह से एसजीपीसी के अध्यक्ष पद पर चुन लिया गया।
धार्मिक वजहों से जरनैल सिंह भिंडरवाले का प्रभाव तो था ही, कॉंग्रेस सरकार का सपोर्ट पाकर जरनैल सिंह भिंडरवाले ने अपनी कट्टरपंथी Activities और तेज कर दी। लेकिन सरकार का समर्थन होने के कारण किसी भी मामले मे गिरफ्तारी नहीं होती है जरनैल सिंह भिंडरवाले की।
Sikh Nirankari Conflicts 1978
सिखों मे एक निरंकारी शाखा भी है जिनका सिखों से मतभेद रहता है। सिख और निरंकारी सिख मे गुरुओं को लेकर मतभेद है सिख मानते हैं की उनके सिर्फ दस गुरु हैं और अंतिम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी हैं जबकि निरंकारी सिख उसमे अपने लीडर को भी गुरु मान लेते हैं और जोड़ लेते हैं। इस वजह से दोनों मे तनाव रहता है।
13 अप्रैल 1978 को यह Conflict इतना ज्यादा बढ़ गया की ये हिंसा का रूप ले गया और कई निर्दोष लोग मारे गए। मुद्दा यह था 13 अप्रैल 1978 को निरंकारी सिखों ने एक मीटिंग बुलाई जिसमे कई सारे निरंकारी सिख लीडर शामिल होने वाले थे लेकिन जरनैल सिंह भिंडरवाले ने कहा की हम ये मीटिंग नहीं होने देंगे। और इसकी वजह से मीटिंग वाले दिन दोनों गुटों मे लड़ाई हो जाती है और लगभग 17 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।
फिर भी जरनैल सिंह भिंडरवाले पर कोई एक्शन नहीं हुआ क्यूंकी जब “सइयाँ भाए केंद्र सरकार तो डर काहे का”। इसके जरनैल सिंह भिंडरवाले की हिम्मत काफी बढ़ जाती है। और 1980 मे निरंकारी सिख के मुखिया बाबा गुरुबचन सिंह और उनके बॉडीगार्ड की दिल्ली मे गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। इस कांड मे भी नाम भिंडरवाले के लोगों का आता है लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं होती है।
1981 जनगणना
1981 मे भारत मे जनगणना शुरू होती है और इसमे लोगों से उनकी Mother Tongue यानि मात्र भाषा भी पूछी जाती थी। यानि अगर ज्यादा लोग राज्य मे हिन्दी बोलेंगे तो हिन्दी को महत्व दिया जाएगा और पंजाबी बोलने वाले होंगे तो पंजाबी को अहमियत मिलेगी। पंजाबी को अहमियत मिले इसलिए भिंडरवाले ने पंजाब मे घोषणा कारवाई की सभी पंजाब के लोग अपनी भाषा पंजाबी ही बताएं। जिसको लेकर पंजाब के हिन्दुओ मे डर था।
ऐसे मे पंजाब केसरी न्यूज़ पेपर के एडिटर लाला जगत नारायण ने अपने लेख के माध्यम से लिखना शुरू किया और हिन्दुओ से अपील करी की डरने की आवश्यकता नहीं है अगर आप हिन्दी बोलते हैं तो अपनी मात्रभाषा हिन्दी ही बताएं। इस वजह से इन्हे 9 सितम्बर 1981 गोली मार दी जाती है।
अब यहाँ से सरकार पे प्रैशर पड़ना शुरू होता है की अब तो जरनैल सिंह भिंडरवाले को गिरफ्तार करना ही पड़ेगा नहीं तो हिन्दू वोट हाथ से निकल जाएगा, शुरू मे तो सरकार नहीं मानती लेकिन जब pressure बाहर के राज्यों से भी पड़ने लगता है तो जरनैल सिंह भिंडरवाले को अरैस्ट करना पड़ता है।
प्रथम बार पंजाब केसरी के एडिटर लाला जगत नारायण के मर्डर केस मे जरनैल सिंह भिंडरवाले की गिरफ्तारी वॉरेंट जारी होता है Bhindrawala Arrest कर लिया जाता है और यहाँ से काँग्रेस और भिंडरवाले मे conflict शुरू होता है। इसके बाद से जरनैल सिंह भिंडरवाला काँग्रेस के हाथ से पूरी तरह निकल जाता है और शुरू होता है Khalistan Movement.
भिंडरवाले की गिरफ्तारी के बाद पंजाब मे भूचाल आ जाता है और जगह जगह हिंसा शुरू हो जाती है। ये हिंसा इतने बड़े पैमाने पर हो जाती है की शांति स्थापित करने के लिए सरकार को भिंडरावाले को जेल से रिहा करना पड़ता है। लोगों का समर्थन इतना ज्यादा था की अकाली दल को भी भिंडरावाले के साथ खड़ा होना पड़ रहा था। आखिर राजनीति होती है कुत्ती चीज-
धर्मयुद्ध मोर्चा
अब शुरू होता है Khalistan Movement का सबसे खतरनाक समय। अकाली दल को लगने लगता है की सिख धर्म की पार्टी तो हम हैं लेकिन नाम ज्यादा भिंडरवाले का हो रहा है इसलिए अकाली दल ने मौका देखकर जरनैल सिंह भिंडरवाले से हाथ मिला लेती है और कॉंग्रेस का दांव उन्ही पर उल्टा पड़ जाता है।
जिस जरनैल सिंह भिंडरवाले को काँग्रेस लायी थी अपने सपोर्ट मे वही भिंडरावाला आज अकाली दल के साथ हो लिया। 1982 मे अकाली और भिंडरावाले ने मिलकर एक धर्मयुद्ध मोर्चा बनाया जिसका उद्देश्य था “Anantpur Shahib Resolution” की मांगों को लागू करवाना। इसके लिए कई बार रैली और जुलूस निकालें गए जिसमे कई जुलूस अनियंत्रित भी हुये। और कई बार कॉंग्रेस सरकार ने फ़ाइरिंग भी कारवाई।
9th Asian Games Delhi 1982
इसी बीच नौवें एशियन गेम्स होने थे दिल्ली मे जिसकी ज़िम्मेदारी राजीव गांधी को संभालनी थी। सरकार चाहती थी की इसमे कोई दिक्कत नहीं आणि चाहिए, उधर धर्मयुद्ध मोर्चा ये प्लानिंग कर रहा था की एशियन गेम्स मे देश विदेश के लोग और मीडिया होगा और ऐसे मे हम कुछ करेंगे तो चर्चा विदेशों तक पहुचेगी। इसलिए धर्मयुद्ध मोर्चे ने इसका विरोध करने का फैसला लिया।
कुछ गड़बड़ी न हो सके इसलिए उधर भारत सरकार ने पंजाब और हरियाणा की तरफ से दिल्ली को जाने वाले सिखों की तलाशी लेनी शुरू कर दी। इसमे सिर्फ सिख और उनके परिवार वालों की ही चेकिंग होती थी। इसमे कई आर्मी वाले सिखों को भी अपमान सहना पड़ा। काँग्रेस की ये रणनीति ने और आग मे घी का कम किया। उन्हे लगा की हमारे देश मे ही हमारा अपमान हो रहा है।
इसके चलते अकाली दल ने तो सधी हुई प्रतिकृया दी लेकिन भिंडरवाले ने इस अपमान का बदला लेने का मन बना लिया, इस समय भिंडरवाला अकाली दल से बड़ा नाम बन चुका था।
1982 पंजाब सीएम दरबारा सिंह पर जानलेवा हमला और प्लेन हाइजैक
अकाली दल मे कुछ लोग भिंडरवाले के खिलाफ हो रहे थे और इसी बीच 22 जुलाई 1982 पंजाब सीएम दरबारा सिंह पर जानलेवा हमला होता है। और अगस्त 1982 को एक भारतीय प्लेन को हाइजैक कर लिया गया जिसमे 126 यात्री थे। Hijacker उस प्लेन को लेकर पाकिस्तान ले गए लेकिन वहाँ उन्हे उतरने नहीं दिया गया जिसके कारण प्लेन को अमृतसर वापस लाना पड़ा और हाइजैकर्स ने खुद को सरैंडर कर दिया।
20 अगस्त 1982 को फिर एक प्लेन हाइजैक होता है जिसे लाहौर ले जाया गया। कुल मिलकर ये समय पंजाब के हिसाब से बहुत खराब समय था कहीं दंगे हो रहे थे कहीं पुलिस अफसरों को मार दिया जा रहा था।
October 1983 Bus Hijack by Khalistani Militants
Khalistan Movement अब चरम पर था और अक्तूबर 1983 को अमृतसर से दिल्ली जा रही एक बस को हाइजैक कर लिया जाता है और हथियारबंद खालिस्तानी आतंकियों द्वारा 38 हिन्दू यात्रियों को नाम पूछकर गोलियों से भून दिया जाता है। यहाँ से पंजाब मे स्थिति बेकाबू हो जाती है और यहाँ पर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है।
Operation Blue Star क्यों करना पड़ा?
15th Dec 1983 को भिंडरवाले ने अपने काम करने की लोकेशन को गोल्डेन टैम्पल अमृतसर के अंदर अकाल तख्त पर शिफ्ट कर लीआ था। वही से अब वो सारी हरकतें करता था। उसको इस बात का पूरा यकीन था की किसी भी कीमत पर पुलिस या आर्मी गोल्डेन टैम्पल के अंदर प्रवेश नहीं करेगी और वो वहाँ सुरक्षित है।
भिंडरवाले ने काफी हथियार इकट्ठे कर रखे थे और उसकी प्लानिंग बहुत बड़ी थी। अब तक उसके समर्थन के काफी अनुभवी लोग आ चुके थे जिनमे से एक नाम है – रिटायर्ड मेजर जनरल शाहबेग सिंह जिन्होने आतंकी भिंडरवाले के fighters को ट्रेंड करना शुरू कर दिया था। इसलिए ऑपरेशन ब्लू स्टार करना ही विकल्प बचा था।
रिटायर्ड मेजर जनरल शाहबेग सिंह
ये 1971 युद्ध के हीरो थे, इन्होने बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के सैनिकों को ट्रेंड किया था पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध मे, ये गुरिल्ला युद्ध के माहिर थे। जिसके लिए इन्हे विशिष्ट सेवा मेडल भी मिला था भारत सरकार से, लेकिन अपनी सर्विस के खत्म होने के एक दिन पहले ही इनपे भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर रिटायरमेंट से एक दिन पहले बर्खास्त कर दीया जाता है। इन्होने काफी सफाई देनी चाहिए लेकिन सुना नहीं गया, बाद मे कोर्ट मे केस करके निर्दोष भी साबित हुये।
इन सब वजहों से उनके मन मे एक बात बैठ गई की धर्म के आधार पर उनके साथ भेदभाव किया गया और वो जुड़ गए भिंडरवाले के साथ Khalistan Movement के साथ। इसके अलावा रिटायर्ड मेजर जसवंत सिंह भूल्लर भी एक नाम था जो Khalistan Movement मे भिंडरवाले के साथ थे।
Operation Blue Star in Hindi
इन्दिरा गांधी सरकार और खालिस्तानी दोनों अब पूरी तरह आमने सामने थे। ट्रक भर भर के हथियार अकाल तख्त पाहुचाए जाने लगे और सरकार भी अपनी तैयारी मे जुट गई। इन्दिरा गांधी ने एकबार और बातचीत का प्रस्ताव भेजा अकाली दल के माध्यम से भिंडरवाले के पास की हम “Ananadpur Sahib Resolution” की मांगे मानने को तैयार है लेकिन कुछ शर्तें नहीं मानी जा सकती।
इसके लिए शिरोमणि अकाली दल तो मान गया था लेकिन भिंडरवाले ने इसको पूरी तरह से रिजैक्ट कर दिया क्यूंकी उसको चाहिए था अलग देश खालिस्तान उससे कम कुछ भी नहीं। और अकाली दल पर निशाना साधते हुये कहा की “अकाली दल को सिर्फ सत्ता से मतलब है उसे सिखों के हितों से कोई लेना देना नहीं है”।
Proposal Reject होने के बाद लड़ाई शुरू होनी थी तो ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत सिविल ड्रेस मे आर्मी के officers गोल्डेन टैम्पल मे पहुचने लगे ताकि Khalistan Movement से जुड़े fighters की पहचान की जा सके और उनकी संख्या का अंदाजा लगाया जा सके। इस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार जो की एक क्लीन शेव सिख थे। अलग अलग राज्यों से पंजाब पहुच रहे tanks हथियार और आर्मी की गाडियाँ देखकर लोगों को लग रहा था कुछ होने वाला है। लेकिन यह ऑपरेशन इतना गुप्त था की राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी को भी नहीं पता था।
1st June 1984 Curfew in Punjab
1 जून 1984 को पूरे पंजाब मे curfew लगा दिया गया फोन लाइंस भी बंद कर दी गई थी और स्टेट पूरी तरह से आर्मी के कंट्रोल मे था। यहाँ तक की न्यूज़ रेपोर्टेर्स को भी बस मे भरकर दूसरे स्थान पर शिफ्ट कर दिया गया ताकि किसी भी तरह की कोई खबर बाहर न आ सके।
3 जून से 6 जून 1984
Operation Blue Star चला था 3 जून से 6 जून तक। 3 जून को गुरु अर्जन देव जी का शहीदी दिवस भी होता है और इस समय ज्यादा श्रद्धालु गोल्डेन टैम्पल मे होते हैं। इसकी टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठे थे इन्दिरा गांधी सरकार पर।
जीतने श्रद्धालु आए थे उन सबको भिंडरावाले ने अंदर ही रोक लिया था ताकि आर्मी कोई हरकत न कर सकते भीड़ देखकर। जो Intelligence report थी आर्मी के पास खालिस्तानी उससे कहीं ज्यादा हथियारबंद थे, उनके पास Rocket-launcher, Anti-tank Guns, Snipper जैसे हथियार थे जो एक ट्रेंड आर्मी के पास होते हैं। Planning ये थी की बाहर से बिजली, पानी, रसद आदि की सप्लाइ रोक देंगे तो ये लोग अपने आप बाहर आ जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
इसी बीच आर्मी को खबर लगी की अमृतसर के आसपास बसे गांवों से हजारो की भीड़ अमृतसर की तरफ बढ़ रही है और उनके पास हथियार भी हैं। आर्मी के हेलीकाप्टर को नजर आ रहे थे हजारों लोग। इसलिए आनन फानन मे इस ऑपरेशन को खत्म करना सेना की मजबूरी बन गया नहीं तो और लोग मारे जाते।
आर्मी ने tank मंगवाकर गोल्डेन टैम्पल को तीन तरफ से अटैक किया गया, अकाल तख्त पर भी गोले बरसाए गए, यह बहुत बड़ा निर्णय था जिसके परिणाम आने वाले समय मे देखने को मिलें। इसके बाद भिंडरावाले के लोग बाहर निकले और आर्मी पर गोलियां बरसाई लेकिन अंत मे 6 जून की सुबह सभी का सरैंडर करा लिया गया और जरनैल सिंह भिंडरावाला मारा गया। इसके साथ ही अकाल तख्त आर्मी के कंट्रोल मे आ गया।
After Operation Blue Star
भिंडरावाले की मौत के बाद Khalistan Movement हिल गया था, लेकिन जब अमृतसर के गोल्डेन टैम्पल की तस्वीरे बाहर आयीं तो एकबार फिर से माहौल गर्म हो गया, जब लोगों को पता चला की अकाल तख्त और दरबार साहिब पर भी गोलियां चली हैं तो पूरी दुनिया के सिख भड़क गए थे। भारतीय सेना के आठ कैंटॉन्मेंट मे से 4000 सिखों ने विद्रोह कर दिया और अपने कई officers को मार दिया।
कई सिख MP और MLA रिजाइन कर चुके थे और माहौल बहुत खराब हो चुका था।
Operation Woodrose
Bhindrawale की मौत के बाद उसके समर्थक अभी भी काफी संख्या मे मौजूद थे जिनको eliminate करने के लिए आर्मी ने दूसरा ऑपरेशन चलाया जिसका नाम दिया Operation Woodrose। आर्मी ने एक के बाद एक गांवों को चारों तरफ घेरकर सिर्फ सिखों की तलाशी शुरू की ताकि किसी के पास हथियार न बचें। इसके लिए भी काफी आलोचना हुई सरकार की। इसके बाद सरकार ने अकाली दल के सभी नेताओं को जेल मे दाल दिया। संत लोङ्गेवाला से लेकर प्रकाश सिंह बादल सभी जेल के अंदर।
1 October 1984 को आर्मी गोल्डेन टैम्पल से withdraw कर ली जाती है। लेकिन तब तक बहुत बड़ा नुकसान हो चुका था। जब लोग गोल्डेन टैम्पल पहुचे और इस तरह के हालात देखे तो कई लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब हाथ मे लेकर कसम खाई की जिंहोने ये सब किया है उनको जान से मार देंगे या इस कोशिश मे खुद मर जाएंगे।
इन hitlist मे मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार, प्रेसिडेंट ज्ञानी जैल सिंह, पीएम इन्दिरा गांधी और पूरा गांधी परिवार था। और कई आर्मी ऑफिसर भी।
प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या
OBS के बाद सबसे ज्यादा खतरा गांधी परिवार को था। क्यूंकी सीख कौम को जो लोग जानते थे उन्हे पता था की Retaliation होगा जरूर और बहुत भारी होगा। इन्दिरा गांधी आवास की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी और तमाम लोग जो निशाने पर थे उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई। Intelligence Input था की इन्दिरा जी को अपनी सुरक्षा मे तैनात सिख सैनिकों को हटा देना चाहिए लेकिन लोगों मे यह संदेश न जाए की कॉंग्रेस सिखों के खिलाफ है उन्होने ऐसा करने से मना कर दिया।
31 October 1984 को इन्दिरा गांधी जी के सिख बॉडीगार्ड बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने 18 गोलियां मारकर मार दिया। उनको एम्स ले जाया गया लेकिन कोई वहाँ उन्हे मृत घोषित कर दिया गया। इसके बाद से पूरे देश मे हिन्दू सिख tention बहुत ज्यादा बढ़ गई। 31 october 1984 को एम्स के बाहर बहुत ज्यादा भीड़ इकट्ठा हो गई थी और खबर ये भी आ रही थी की वहाँ पर जो भी सिख दिख रहे थे उनको मारा पीटा जा रहा था। यहाँ तक की भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जब एम्स पहुचे तो उनकी गाड़ी पर भी पथराव किया गया।
1984 Sikh Riots
इन्दिरा गांधी जी की हत्या के बाद एम्स पर उमड़ी भीड़ दिल्ली के अलग अलग हिस्सों मे पहुची और सिखों की दुकानों मे आगजनी और लूट शुरू हुई। कनौट प्लेस मे सिखों की दुकाने गाडियाँ जला दी गईं। और पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया।
Doordarshan पर इन्दिरा जी के अंतिम संस्कार को दिखाया जा रहा था जिसमे भीड़ नारे लगा रही थी “खून का बदला खून”। और फिर शुरू हुआ इतिहास का सबसे बड़ा नरसंघार जिसे Sikh Riots 1984 कहा जाता है। हालांकि ये को Riot नहीं था इसमे पूरी दिल्ली मे सिखों को खोज खोज के मारा जा रहा था, सौ से ज्यादा गुरुद्वारे जला दिये गए, 2800 से ज्यादा सिख मार दिये गए। लूटपाट हुई। और इन सबको लीड कर रहे थे कई काँग्रेस लीडर।
पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया, कई सिखों को अपने बाल कटवाकर अपनी जान बचनी पड़ी, कई सिखों ने हिन्दू घरों मे छिपकर जान बचाई। माहौल ऐसा था की अगर उनको पता चल जाता की किसी हिन्दू के घर मे सिख छिपा है तो उसे भी नहीं छोडते थे। बहुत ही भयावह मंजर था वो।
PUCL की रिपोर्ट के अनुसार कई काँग्रेस नेताओं के नाम शामिल थे इस हिंसा मे जिनमे इनके सज्जन कुमार, जगदीश टाईटलर, धरमदास शास्त्री, एच के एल भगत जैसे नाम शामिल थे। साथ ही दिल्ली municipal के अधिकारी और कई पुलिस वालों के भी नाम थे। इस घटना मे अरैस्ट हुये करीब 1800 लोगों को बाद मे छोड़ दिया गया और उनपर कोई मुकदमा नहीं चला।
काँग्रेस नेता सज्जन कुमार जिसको सीबीआई ने जिम्मेदार ठहराया था उसको 1989 मे टिकिट मिला और वह जीत भी गया। लिस्ट लंबी है आप सीबीआई की व्यापक रिपोर्ट इंटरनेट से देख सकते हैं।
Rajiv Longewala Accord
इन्दिरा जी की हत्या के उमड़े सेंटिमेंट के आधार पर अगले चुनाव मे राजीव गांधी भारी बहुमत से जीतकर आए। उन्होने कहा पंजाब के शांति उनकी सबसे पहली प्राथमिकता रहेगी। उसके बाद उन्होने सभी अकाली नेताओं को जेल से रिहा करवाया और 24 जुलाई 1985 को राजीव लोङ्गेवाला एकोर्ड साइन किया जिसमे एक मुख्य बात ये कही गई थी की 26 जनवरी 1986 को चंडीगढ़ को पंजाब मे शामिल कर लिया जाएगा।
जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत तो जो चुकी थी लेकिन उसके विचार और समर्थक पंजाब मे आज भी मौजूद थे। राजीव गांधी ने मामले को ठंडा करने के लिए एकोर्ड तो साइन कर लिया था लेकिन तत्कालीन हरयाणा के सीएम भजन लाल ने कहा की अगर चंडीगढ़ पंजाब को दिया गया तो हरयाणा के हिन्दू वोट नहीं देंगे और आपके हाथ से हरयाणा भी चला जाएगा।
अब राजीव गांधी को लगा की गलती हो गई और वो अपने ही साइन किए एकोर्ड से पीछे हट गए। उधर भिंडरवाले के समर्थक एक बार फिर गोल्डेन टैम्पल मे बैठ गए थे। सरकार उन्हे धीरे धीरे eliminate कर रही थी और इसी बीच उन्होने Operation Black Thunder भी चलाया एकबार 1986 मे और दूसरी बार 1988 मे, लेकिन इसबार पुलिस ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया और टैम्पल को कोई नुकसान नहीं पाहुचाया गया। इसके साथ ही जरनैल सिंह भिंडरावाले के समर्थक पूरी तरह खत्म कर दिये गए और Khalistan Movement खत्म हो गया।
Sikh Appeasement Activities
इन सबके बाद काँग्रेस ने सिख समुदाय को खुश करने के लिए कोशिशें शुरू की जैसे – प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी ने हर मीटिंग से पहले “वाहेगुरु दा खालसा वाहेगुरु दी फतेह” का नारा देते थे फिर मीटिंग शुरू करते थे।
इसके बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना भी इसी पॉलिसी का हिस्सा था। इसके बाद situation normalize होने लगी, अकाली दल और कॉंग्रेस ने मिलकर Sikh Extremist को पंजाब से बाहर किया गया। कुछ को मार दिया गया और कुछ पाकिस्तान के रास्ते कनाडा जैसे देशों मे शिफ्ट हो गए। इस तरह से Khalistan Movement पंजाब से निपट गया। बीच बीच मे इक्का दुक्का खलिस्तान की आवाजें निकलती थी लेकिन वो आवाजें इतनी powerful नहीं थीं जिनपे ध्यान दिया जाए।
2015 Khalistan Movement Return
2014 तक चीजें नॉर्मल रहीं और फिर अचानक से 2015 मे पुनः खलिस्तान की सुबुगाहट शुरू होती है। इसबार किसान आंदोलन के बहाने कुछ बातें चलाई जा रही थी जिसमे मुखिया बने दीप सिद्धू।
चूंकि केंद्र मे काफी समय के बाद सत्ता काँग्रेस के हाथ से गई थी और पंजाब मे अकाली भी कमजोर पड़ चुके थे तो कुछ लोगों को लगा की पंजाब के पुराने गड़े मुरदों को वापस जिंदा किया जाए और राजनीति मे धर्म को घुसकर कुछ नया तमाशा किया जाए। इस बार किसान आंदोलन के माध्यम से दीप सिधू धर्मग्रंथ की बेअदबी और पानी का मुद्दा किसानों को मुद्दा लेकर एक घालमेल तैयार किया गया।
2018 मे केंद्र सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषि कानूनों को आधार बनाकर किसान आंदोलन शुरू किया गया इस मे भी खलिस्तान के कई स्लोगन दिये गए और विदेशों मे Khalistan Referendum होने लगा इस प्रकार की घटनाए सामने आती है। दीप सिद्धू ने “वारिस पंजाब दे” नाम से एक संस्था बनाई जिसमे पंजाब की अस्मिता को आधार बनाया जाने लगा। और इसका उद्देश्य रखा गया की केंद्र से पंजाब के अधिकार दिलाये जाएंगे। लेकिन पंजाब चुनाव से कुछ दिन पहले ही 15 फरवरी 2022 को एक रोड एक्सिडेंट मे दीप सिधू की मृत्यु हो गई।
Amritpal Singh की Entry
दीप सिद्धू की मौत के बाद एंट्री होती है दुबई रिटर्न अमृतपाल सिंह की, अमृतपाल सिंह दुबई से दीप सिद्धू के संपर्क मे था लेकिन इनकी आपस मे मुलाक़ात नहीं हुई थी। अमृतपाल ने आते ही “वारिस पंजाब दे” पे कब्जा कर लेता है, September 2022 को अमृतपाल सिंह को Head ऑफ Waarish Punjab De बनाया जाता है।
दरअसल ये सारा खेल चलाया जा रहा था विदेशी धरती से, और एकबार फिर से Khalistan Movement को पंजाब मे फिर से जिंदा करने की कोशिश हो रही थी। भिंडरावाले के पुश्तैनी गाँव रोडे जो मोगा जिले मे स्थित है वहाँ से अमृतपाल सिंह की दसतारबंदी की जाती है और काफी लोग जुटते हैं। और इसका भी वही अंदाज भिंडरावाले की तरह ही फिर से नशा मुक्ति अभियान, कट्टरपंथी सिख विचारधारा का पालन जैसी चीजे शुरू होती हैं फिर से।
गुरुद्वारों से बैठने की कुर्सियाँ हटवाना और मंदिरों से गुरुग्रंथ साहिब हटवाना बेअदबी के नाम पर यही सब काम था। कुल मिलकर अमृतपाल सिंह वही कट्टरपंथी सोच को पंजाब मे लागू करना चाहता था।
अजनाला कांड 2023
अब आप देखेंगे की ये भी 1980 के दशक की स्थित फिर से बननी शुरू हो रही थी लेकिन इसबर केंद्र मे थी मोदी सरकार और पंजाब मे आम आदमी पार्टी सरकार। अमृतपाल सिंह के साथी तूफान सिंह को अरैस्ट कर लिया जाता है एक Kidnapping के मामले मे। लेकिन 23 फरवरी 2023 को अमृतपाल सिंह अपने हजारों समर्थकों के साथ अजनारा पुलिस स्टेशन पर धावा बोल देता है। इसके लिए उसने चुना पवित्र गुरुग्रंथ साहिब को ढाल के तौर पर। अमृतपाल ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपने सिर पर रखकर थाने गया ताकि कोई पुलिस वाला जबाबी कार्यवाई न कर सके। पुलिस ने तूफान सिंह को छोड़ दिया लेकिन कई पुलिस वाले घायल भी हुये इस घटना मे।
केंद्र सरकार का एक्शन और अमृतपाल सिंह भगौड़ा घोषित
अजनाला कांड के बाद स्थिति को भापते हुये केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय पूरी तरह एक्शन मोड मे आगया और अमृतपाल सिंह पर कार्यवाई का मन बना लिया। इसके बाद शुरू होता है लुका छिपी का खेल, पंजाब पुलिस और केन्द्रीय रिजर्व फोर्सेस छापेमारी करती हैं पंजाब मे जगह जगह. 18 March 2023 को अमृतपाल सिंह भगौड़ा करार दे दिया गया और आखिरकार 37 दिनों के बाद अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
गिरफ्तार करके अमृतपाल सिंह को असम के डिब्रुगढ़ जेल मे शिफ्ट कर दिया गया है।
Conclusion- Final Words
Khalistan Movement और इसके पीछे की सोच को भले ही कुछ ही सिखों का समर्थन प्राप्त हो लेकिन इसका खामियाजा भुगता है हजारों सिखों ने। सिख समुदाय के लोग अपने धर्म को लेकर ज्यादा sensitive हैं इसका लाभ कट्टरपंथियों ने उठाया। आपने ऊपर पढ़ा होगा की किस प्रकार तीन दशकों तक पंजाब Khalistan Movement के चलते अशांत रहा। आज भी कनाडा की धरती पर बैठे चंद खालिस्तानी भारत को चुनौती देते रहते हैं।
यह पूरा प्रकरण काँग्रेस सरकार की अदूरदर्शिता कर परिणाम था ये तो आपने Khalistan Movement से जुड़े घटनाक्रम से आप समझ ही चुके होंगे। सिखों के मुद्दों को काफी लाचर तरीके से हैंडल करना, त्वरित राजनीतिक नफा नुकसान को देखकर निर्णय लेना पंजाब के लिए बहुत भरी पड़ा। इसमे काँग्रेस 70% तो अकाली दल भी 30% जिम्मेदार जरूर है। जो भी हो Khalistan Movement का असल नुकसान तो जनता ने ही चुकाया है। आपको जानकारी कैसी लगी कमेंट मे जरूर बताएं।