जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे: आपने ये हिन्दी कहावत तो सुनी होगी, शहर वाले इससे शायद न परिचित हों लेकिन गाँव का लगभग हर व्यक्ति इस कहावत से परिचित होगा। शहर वालों के लिए बताते चलें की “जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे” इसमे पूत का मतलब पुत्र से है और भतार से तात्पर्य है पति से। गाँव मे पति को भरतार या भतार भी कहा जाता है। इस कहावत का शाब्दिक अर्थ यह है की – जो जैसा करेगा उसे वैसा ही मिलेगा, पुत्र का व्यवहार पति के सामने ही आ जाता है। इसके पीछे के कहानी पढ़कर आपको अच्छे से ये कहावत और इसके मायने समझ मे आ जाएंगे। इस कहवात के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है –

कहानी – जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे

एक बुजुर्ग महिला ने सोचा था कि मेरे बेटे की शादी होगी और जब मेरी बहू आएगी तो मुझे कुछ काम नहीं करना पड़ेगा। बेटा-बहू, दोनों मिलकर सेवा करेंगे। पति तो युवावस्था में ही खत्म हो गया था। फिर सोचा, मैं दादी बनूंगी और हमारा घर स्वर्ग बन जाएगा।

और फिर समय आ गया- बुढ़िया के लड़के की शादी हुई, और वह दादी भी बनी, लेकिन उसका सोचा हुआ असली सपना साकार नहीं हुआ।

होता ये था की बुढ़िया का लड़का सवेरे-सवेरे काम पर चला जाता था और पोता स्कूल चला जाता था। उसके बाद बहू बुढ़िया के साथ मनमाना व्यवहार करती। उससे जूठे बरतन मंजवाती। पूरे घर में पोंछा लगवाती। अब उसे फूटी थाली में भोजन दिया जाता था।

कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। एकदिन जब बहू ने अपने पति और बच्चे के सामने अपनी सास बुढ़िया को फूटी थाली में भोजन दिया, तो पति ने विरोध किया। इस बात पे उससे कहा-सुनी हुई लेकिन अब बहू और ढीठ हो गई थी। अब वह सबके सामने अपनी सास को फूटी थाली में भोजन देने लगी और अपने पति के विरोध का सामना करती रही। कुछ दिन बाद बुढ़िया के लड़के ने विरोध करना छोड़ दिया।

जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे

कहानी मे Twist : जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे

जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता गया, अपनी दादी के प्रति मां के बढ़ते जुल्मों सितम को देखता रहा। समझदार होने पर जब उसका विरोध करता, तो उसकी माँ उसे भी लताड़ देती, लेकिन वह अपनी दादी के प्रति आदर और सहानुभूति रखता था। वह मन से अनुभव करता था कि घर में दादी के साथ सही व्यवहार नहीं हो रहा है। कुछ साल इसी तरह बीतने के बाद बुढ़िया के पोते की शादी का दिन आ गया।

बुढ़िया के पोते की बहू आई। जब घर में बहू आई, तो खुशी का वातावरण था। रिश्तेदारों के जाने के बाद बुढ़िया के वापस वही दिन आ गए। बुढ़िया से बरतन मंजवाना, बात-बात पर डांट और फूटी थाली में भोजन।

नई बहू यह सब छिप-छिपकर देखती रहती। समय-समय पर दादी के बारे में अपने पति से पूछती भी थी। कभी-कभी पतोहू को ससुर से भी जानकारी मिल जाती थी। कुछ दिन बाद बुढ़िया की बहू अपनी पतोहू से भी लड़ने लगी। अब पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाए रखती। बूढ़ी औरत की पतोहू कभी कभी अपनी दादी सास की बर्तन धोने मे मदद करने लगती तो उसकी सास बरस पड़ती और कहती, तेरे लिए ढेरों काम हैं, अपना काम कर।”

कभी-कभी पतोहू अपनी दादी-सास के आंसुओं को देखती, तो पिघल जाती और छिपकर बुढ़िया के पास बैठकर उसके दुख की कहानी सुनती। एक बार बुढ़िया बीमार हुई, तो फिर उठी ही नहीं। आठ-दस दिन बीमार रहकर इस दुनिया से मुक्ति पा गई।

अब वह पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाए रखती। जब पतोहू से मनमाना करने लगती, तो झगड़ा शुरू हो जाता। जब पतोहू ने देखा कि मेरी सास जैसे अपनी बूढ़ी सास को खरी-खोटी सुनाती थी, उसी तरह मुझे भी खरी-छोटी सुनाने लगी है, तो उससे रहा न गया।

अब उसने भी कमर कस ली और वह भी लड़ने लगी और उससे उसी तरह का व्यवहार करने लगी, जैसा वह अपनी सास के साथ व्यवहार करती थी। अब पतोहू अपनी सास से झाडू लगवाती और बरतन मंजवाती। उसके बाद पतोहू उसी फूटी हुई थाली में खाना परोसकर देने लगी, जिसमें उसको सास दादी-सास को खाना देती थी।

जब पहली बार पतोहू ने सास को फूटी थाली में खाना दिया, तो पतोहू के ससुर और पति ने विरोध किया।

पतोहू ने जवाब देते हुए कहा, जब वह अपनी सास को इस फूटी थाली में भोजन कराती थी, तब तो आप दोनों के मुँह सिल गए थे। कोई कुछ नहीं बोलता था। कितनी सीधी मेरी दादी-सास थी, उसके साथ इसने कैसा व्यवहार किया। उसके आगे तो यह कुछ भी नहीं है। अब क्यों आप लोग इसकी पैरवी कर रहे हैं?”

कोई भी कुछ नहीं बोल सका क्यूंकी उनके पास जबाव नहीं था इस बात का। अब सास भी जानती थी कि यदि कुछ पतोहू से कहा, तो मार-पीट भी कर देगी। अब पतोहू से कोई कुछ नहीं कहता था। ससुर का बुढ़ापा था। वह अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ इस प्रकार का व्यवहार होते देख नहीं पाता था। उसे गुस्सा आ जाता, तो कुछ-का-कुछ बक देता था। जब पतोहू जवाब दे देती थी, तो चुप हो जाता था। जब ससुर भी ज्यादा बोलने लगा, तो उनके साथ भी सास जैसा व्यवहार होने लगा। कभी-कभी एकांत में बैठकर सास-ससुर अपने सुख-दुख की कहानियां याद कर लेते थे और दोनों ही सोचते थे- ‘जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे।

जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे। इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

ये जीवन के उतार चढ़ाव, बचपन जवानी बुढ़ापा सबके साथ आता है। हमारे बच्चे हमसे ही सीखते हैं, जो अपने आसपास देखते हैं वही उनके दिमाग मे चलता है और वह आगे चलके वैसा ही अनुकरण करते हैं।

ये कहानी हमे सीख देती है की हम जैसा करते हैं वही भविष्य मे हमारे सामने आता है। कर्म कभी हमारा पीछा नहीं छोडते हैं इसलिए हमें किसी के साथ बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए क्यूंकी कल हमारा भी वैसा टाइम आयेगा। आप हमेशा जवान नहीं रहोगे बुढ़ापा अटल सत्य है। “जैसा करे वैसा पावे पूत-भतार के आगे आवे


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