Israel-Palestine Conflict: आपने खबरों मे, Social Media मे बहुत बार सुना होगा Israel-Palestine Conflict के बारे मे, लेकिन क्या आप जानते हैं की इसके पीछे की ऐतिहासिक वजह क्या है? क्यूँ जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा इतना विवादों मे रहता है? Googal Baba के FactCheck कैटेगरी मे आज हम विस्तार से समझेंगे इसराएल और फिलिस्तीन विवाद से जुड़े हर पहलू और ऐतिहासिक घटनाओं के बारे मे। आपको यह लेख धैर्य से पढ़ना होना ताकि आपको बिन्दुवार घटनाओं के साथ कड़ी से कड़ी जोड़कर पूरा मामला समझ मे आ सके-
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Israel देश कब और कैसे बना ?
14 मई, 1948 को, इज़राइल देश का निर्माण हुआ। Israel-Palestine Conflict उन्नीसवीं सदी के अंत का जरूर है लेकिन इसका इतिहास कई हजार वर्षों का है जो हम आगे बात करेंगे। 1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने Resolution 181 को स्वीकार कर लिया, जिसे विभाजन योजना के रूप में भी जाना जाता है।
इस resolution 181 के पास होने से जिसमें फिलिस्तीन (जो की ब्रिटिश शासित था) को अरब और यहूदी राज्यों में विभाजित करने की मांग की गई थी। 14 मई, 1948 को, इज़राइल राज्य का निर्माण हुआ, और इसी के साथ पहला अरब-इजरायल युद्ध छिड़ गया। 1949 में इज़राइल की जीत के साथ युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन 750,000 फ़िलिस्तीनी विस्थापित हो गए, और क्षेत्र को 3 भागों में विभाजित किया गया: इज़राइल राज्य, वेस्ट बैंक (जॉर्डन नदी का), और गाजा पट्टी जिसे आप ऊपर map मे देश सकते हैं।
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Gaza Patti क्या है? और West Bank Area कौन सा है?
गाज़ा पट्टी: इस्रायल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित करीब 7 कि॰मी॰ चौड़ा और 45 कि॰मी॰ लम्बा क्षेत्र है। इसके दक्षिण मे मिश्र (Egypt) है और पश्चिम मे भूमध्यसागर और उत्तर तथा पूर्व मे Israel है। ये फिलिस्तीन का हिस्सा है। नीचे दिये Israel Map मे आप ग्रीन हिस्सा नीचे की तरफ है वही गाज़ा पट्टी है।
West Bank Area: इस्राइल मे मध्य पश्चिम मे जॉर्डन की सीमा से सटे यरूशलम के आसपास के क्षेत्र को West Bank कहा जाता है।
साइड मे दिये गए Map मे आप आसानी से देख सकते हैं, ये Map 1949 का है इसके बाद कई युद्ध हुये और इस्राइल ने हर जीत के बाद वेस्ट बैंक और Jerusalem के आसपास के इलाकों को अपने नियंत्रण मे ले लिया। वेस्ट बैंक इस समय इस्राइल की सीमा के भीतर है क्यूंकी जॉर्डन के सीमा के साथ का भाग इस्राइल के कब्जे मे है।
History Of Israel-Palestine Conflict (इसराएल और फिलिस्तीन विवाद का पूरा इतिहास)
Israel-Palestine Conflict को अच्छे से समझने के लिए इतिहास मे थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। इसको हम timeline के हिसाब से समझते हैं जिससे की आपको पूरा मामला शीशे की तरह साफ हो जाए:
- इन सब चीजों की शुरुआत होती है 1047 BC में, उस समय ये पूरा क्षेत्र “किंगडम ऑफ इजराइल” हुआ करता था। यहां पर Jews रहते थे। इसको Jews किंग सोलोमन रूल करते थे, किंगडम ऑफ़ इजराइल की जो कैपिटल थी वह थी जेरूसलम।
- इसी यरुशलम में किंग सोलोमन ने पहला टेंपल बनवाया था जिस का नाम था “टेंपल माउंट” इसको Jews का First Temple भी कहते हैं और इस टेंपल में Jews रेगुलर पूजा किया करते थे।
- अब इसके बाद 586 BC Babylonian आते हैं और Temple Mount यानी first temple को तोड़ देते हैं।
- इसके बाद आता है Persian Empire जिन्होंने फिर से उस टेंपल का पुनर्निर्माण करवाया, जिसके कारण Temple Mount जो पहला नाम था इस नए टेंपल का नाम “सेकंड टेंपल” पड़ जाता है।
- इसके बाद आता है Roman Empire – और उन्होंने Second Temple को फिर से तुड़वा दिया। और इस मंदिर की सिर्फ एक वॉल (दीवार) बचती है जिसे आज “West Wall” के नाम से जाना जाता है। और Kingdom of Israel बन जाता है Rome (रोम)।
- इसके बाद काफी संख्या में Jews Europe में अलग अलग देशों में शिफ्ट हो जाते हैं क्योंकि इन्हे यहां मारा जा रहा होता है।
- कुछ Jews यहां पर बच जाते हैं उन्हीं में से एक परिवार में Jesus Christ पैदा होते हैं। यानी Jesus दरअसल एक Jews थे।
Roman Empire के शासन में ही Jesus बड़े हुए। और जैसे जैसे वो बड़े हुए उन्होंने Jews की मुख्य धारा से अलग हटकर, येरूशलम इलाके में अपनी अलग Teachings शुरू कर दी। ठीक वैसे ही जैसे गौतम बुद्ध जी हिंदू थे और उन्होंने Hinduism सेअलग हटकर Budhism की शिक्षा दी जो आगे चलकर बौद्ध धर्म बना, उसी प्रकार गुरु नानक देव जी ने हिंदू धर्म से थोड़ा अलग हटकर एक नया सिख पंथ की शिक्षा दी जो सिख धर्म बना ।
हिन्दू इतने लिबरल हैं की इन्हे न बुद्ध से दिक्कत न महावीर जैन से लेकिन Jesus ने Jews से अलग हटकर ईसाईयत की शिक्षा देनी आरंभ कर दी और काफी तेजी से पॉपुलर होने लगे।
येरूशलम में इस अलग तरह से एक अलग धर्म प्रचार के कारण Jews जो थे वो नाराज हो गए उनसे। बात इतनी आगे बढ़ गई की एकदिन Jews ने येरूशलम में सबके सामने Jesus Christ को एक cross पे टांगकर कील ठोक दिया इसके कारण उनकी जान चली गई।
Importance of Jerusalem (येरूशलम का महत्व)
येरूशलम इसराएल और West Bank के बीच एक 37 एकड़ जमीन के टुकड़ा है। और ये जमीन का टुकड़ा आपने ऊपर पढ़ा होगा कि पहले Jews के लिए काफी महत्वपूर्ण था यहीं पर Jews का पहला टैम्पल “Temple Mount” बना था। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ की इस 37 एकड़ जमीन- Jews Christian और Arab (Muslims) तीनों के लिए महत्वपूर्ण बन गया। आगे समझते हैं की ऐसा कैसे हुआ? क्रिश्चियन और मुस्लिम की एंट्री येरूशलम मे कब हुई?
Roman Empire जो 27 ई.पू. से 476 ईशवी तक चला। 306 ईशवी मे रोमन साम्राज्य मे नया शासक बनता है- जिसे कॉन्स्टेंटाइन द ग्रेट के नाम से भी जाना जाता है , 306 ई. से 337 ई. तक रोमन सम्राट था। वह ईसाई धर्म अपनाने वाला पहला सम्राट था। कॉन्स्टेंटाइन का झुकाव Christianity कि तरफ बहुत ज्यादा था अब चूंकि Jews ने मारा था Jesus Christ को इसलिए ये Roman King चुन चुनकर Jews को मारने लगता है। जिसकी वजह से Rome Empire से Jews को भागना पड़ता है। और वो यूरोप मे जाकर अलग अलग जगह शरण लेते हैं।
जिस जगह पर Jesus Christ को Cross पर लटकाया गया था उसी जगह पर Roman Empire कॉन्स्टेंटाइन द ग्रेट एक चर्च का निर्माण करवाया। इस चर्च का नाम पड़ा – “Church of Holy Sepulchre” Established 326 ईशवी। यह चर्च Jews के प्राचीन “Temple Mount” वाले इलाके से करीब 2 किलोमीटर दूर था।
After 636 AD Arab Rule
636 ईशवी मे रोमन एंपायर को हराकर “Arab Army of Umar” ने रोम पर कब्जा कर लिया। जो पहले Kingdom of Israel हुआ करता था वो Roman Empire हुआ और अब हुई इसमे Arabs यानि मुस्लिम्स कि एंट्री- जो आजतक “Israel-Palestine Conflict” का कारण बनी।
हालांकि आज Jews और Muslims मे बिल्कुल भी नहीं बनती लेकिन उस समय रोमन एंपायर की तुलना मे Arab Empire मे Jews को काफी सहूलियत थी क्यूंकी इन दोनों के धर्म मे काफी समानता थी।
एक ही स्थान को Jews “Temple of Mount” और Muslims “Haram Al Shareef” क्यूँ कहते हैं?
अरब आर्मी के नियंत्रण मे जब ये येरूशलम का एरिया आता है तो जिस जगह पर “Second Temple” यानि “Temple ऑफ माउंट” जो दुबारा बना था उसी के पास उन्होने बनवा दिया- “Dome of the Rock” उसी के थोड़ी दूर पर “Al Akxa Masjid” बनी-
मुस्लिमों का कहना है की – जहां पर “Dome of Rock” बना हुआ है वहाँ से एक पत्थर पर पैर रख के पैगंबर जन्नत की तरफ चले गए थे। और जहां “अल अक्सा मस्जिद” बनी है वहाँ पर उन्होने prayer किया था। नीचे diye गए चित्र से आप आसानी से समझ जाएंगे। जिस फोटो पर Temple of Mount लिखा है उसी को मुस्लिम लोग “हरम अल शरीफ” कहते हैं।
अल अक्सा मस्जिद मे गैर मुस्लिमों को अनुमति नहीं है जबकि साइड मे “Western Wall” है वहाँ पर Jews पूजा कर सकते थे। और आज भी करते आ रहे हैं। यहीं से 2 किलोमीटर की दूरी पर है Church of Holy Sepulchre जहां पर Jesus की मृत्यु हुई थी। ये पूरा 37 एकड़ का एरिया है जिसपे Islam Christian और Jews तीनों की ऐतिहासिक दावेदारी है।
Israel-Palestine Conflict During 1850-1950
बात है करीब 1890 की इस समय kingdom of Israel पे अरब की हुकूमत थी, लेकिन पूरी दुनिया के अलग अलग कोनों मे बसे यहूदी अपने वतन वापस लौटने की बात करने लगे थे। उसकी वजह ये भी थी एक तो उनपे Jesus की हत्या का आरोप था इसलिए उन्हे हर जगह Second Class Citizen की तरह ट्रीट किया जाता था। उनके साथ Robbery, मारपीट भी होती थी। ईसाइयत से इनकी इसलिए भी नहीं बनती थी क्यूंकी ये लोग ब्याज पर लोन देने का काम करते थे और इस्लाम और इसाइयत मे ये गलत माना जाता है।
1891 Zionism Movement
एक Jews Writer हुये जिनका नाम था- Leon Pinsker – इनहोने Auto Emancipation नाम की एक किताब लिखी जिसमे एक अलग यहूदी देश की परिकल्पना रखी गई। इसमे इनहोने लिखा की किस तरह से पूरे यूरोप मे इनसे भेदभाव किया जाता है इसलिए यहूदियों को अपनी किस्मत खुद लिखनी होगी और अपना एक स्वतंत्र देश बनाना ही होगा। जिसके बाद से पूरे विश्व मे रह रहे यहूदियों ने इसे एक मूवमेंट की तरह लिया और जिस माध्यम से हो सके pressure बनाना शुरू किया।
हालांकि Jews (यहूदी) के पास अपना देश नहीं था फिर भी ये जहां भी थे काफी पढे लिखे और सम्पन्न थे, इसलिए भी इनका Influence था विश्व पटल पर। ऐसे मे शुरू होता है विश्व युद्ध प्रथम-
Year 1914 Before First World War
1914 के आसपास विश्व युद्ध के हालत बनने लगे थे- ये तो आपको पता ही होगा की इसमे जर्मनी और Britain एक दूसरे के खिलाफ थे। इस समय Jews Kingdom पर Ottoman Empire का शासन था वो जर्मनी यानि हिटलर के समर्थन मे आ चुका था। इसलिए britain को भी अपने सहयोगी बढ़ाने थे।
britain के अधिकारियों को लगने लगा था की रूस और अमेरिका मे फैले Jews अपनी सरकारों को प्रभावित कर सकते हैं की उस देश की सरकार किसके पक्ष मे जाएगी। इसलिए Britain ने यहूदियों को खुश करने के लिए उनके Favor मे एक Balfour Declaration निकाला जिसमे यहूदियों के लिए अलग देश का मजबूत समर्थन किया गया। जिसमे कहा गया की यहूदियों को Palestine जो की उनका घर है वहाँ पर बसाया जाना चाहिए।
प्रथम विश्व युद्ध मे एक तरफ Britain को US, USSR, Jews का साथ था तो दूसरी तरफ जर्मनी को Ottoman Empire का समर्थन प्राप्त था। WW-1 मे यहूदियों ने खुलकर Britain का साथ दिया और और 1918 मे Britain ये युद्ध जीता भी। इसी के बाद से अटकलें लगाई जाने लगी थी की Palestine में यहूदियों को जगह जरूर मिलेगी। हुआ भी ऐसा ही-
- 1918 मे WW-1 जीत के बाद Ottoman Empire जो Jews Kingdom पे राज कर रहा था उसको हटाया जाता है और वहाँ पर Britain का शासन स्थापित हो जाता है।
- इसके बाद Britain ने Balfour Declaration को फॉलो करते हुये पूरे यूरोप से यहूदियों को Palestine वाले एरिया (जो पहले Kingdom of Israel या Kingdom of Jews था) मे बसाया जाने लगता है।
- भले ही इतिहास मे मे Palestine का पूरा इलाका Jews Kingdom हुआ करता था लेकिन इस समय ये मुस्लिम बहुल क्षेत्र था और इसकी वजह से अरब देशों को Jews को यहाँ बसाएँ जाने पर आपत्ति थी और ये बात अरब देशों मे Britain के सामने रखी लेकिन उसका कुछ खास असर हुआ नहीं।
- British Census of Palestine 1922 के अनुसार इस एरिया मे अरब यानि मुस्लिम जनसंख्या 78% थी और यहूदी मात्र 11% जो की 1950 आते आते Palestine Area मे Muslims 47% रह गए और Jews 50% और 3% क्रिश्चियन हो जाते हैं। पूर्वी यूरोप, पोलैंड, जर्मनी से लाखों की सख्या मे यहूदी Palestine पहुँच रहे थे।
- Zionism Movement की जो संस्था थी उसने यहूदियों के लिए Funding की जिससे बड़ी संख्या मे Palestine Region मे यहूदियों ने मुस्लिमों से ज़मीनें खरीदकर अपना विस्तार किया।
- Jews की मजबूरी ये थी उनके पास अपना देश नहीं था, हिटलर के उदय के बाद से लाखों Jews (यहूदियों) को मौत के घाट उतार दिया गया, उनके साथ हर जगह भेदभाव होता था। यहूदी लोग गैर यहूदी से शादी नहीं कर सकते थे इस तरह की तमाम पाबन्दियाँ थी उनके ऊपर। इसलिए उनके पास अपनी मात्र भूमि – Kingdom of Israel (जो अब Palestine के नाम से जाना जाता था) पर वापस लौटने के अलावा कोई और विकल्प था भी नहीं।
World War 2
1939 मे दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, इसमे अरब देशों मे जर्मनी के हिटलर का साथ दिया और Jews ने जान लगाकर Britain, US, USSR का साथ दिया। Jews की एक खास बात ये थी की ये युद्ध नहीं हारते थे और हमेशा से अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ते थे। WW2 के टाइम पे होलोकास्ट हुआ था जिसमे जर्मनी ने 60 लाख यहूदियों का नरसंघार कर दिया। WW 2 मे Jews को हिटलर के खिलाफ लड़ने का मौका मिल रहा था इसलिए भी Jews पूरी जान लगाकर इस युद्ध को जीत तक ले गए और Britain जीता, जर्मनी फिर से हारा।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद United Nation बना ताकि भविष्य मे युद्ध को टाला जा सके। लेकिन UN मे सबसे ज्यादा प्रभाव उन देशों का रहा जो विश्व युद्ध जीते थे यानि Britain, US, USSR और चूंकि यहूदियों ने काफी बलिदान दिया था इस युद्ध मे तो उनको भी Reward मिलना तय था। और वो Reward था उनका अपना एक स्वतंत्र यहूदी देश।
Partition of Palestine 1947 by UN
Britain ने Balfour Declaration, United Nation को सौंप दिया ये कहकर की – अब UN बन गया है तो Balfour Declaration पर निर्णय लेने का अधिकार UN को है। इसके बाद एक कमेटी बनी जिसमे 11 देशों के सदस्य थे जिसने Palestine का दौरा किया। यूएन कमेटी ने पाया की – Palestine मे 1/3 जनसंख्या Jews की है और 2/3 जनसंख्या अरब की है जबकि कुल जमीन का 6 प्रतिशत हिस्सा ही Jews के पास है।
UN Resolution on Palestine Partition: यूएन कमेटी ने इसका ये उपाय निकाला की – Palestine को तीन हिस्सों मे बाँट दिया जाए जिसमे – एक हिस्सा स्वतंत्र देश इसराएल को दे दिया जाए, एक हिस्सा अरब को Palestine देश बना दिया जाए और Jerusalem को स्वतंत्र यूएन की निगरानी मे रखा जाए क्यूंकी ये पवित्र स्थान यहूदियों, इसाइयों और मुस्लिमों तीनों के लिए महत्वपूर्ण है।
इस Resolution को पास करवाने के लिए वोटिंग हुई- जिसमे मुस्लिम देशों के अलावा भारत ही एक मात्र ऐसा गैर मुस्लिम देश था जिसमे Palestine बंटवारें के विरोध मे वोट किया बाकी सभी ने पक्ष मे वोट किया। फिलहाल रेसोल्यूशन पास हो गया और १९४७ मे Palestine का बटवारा मान्य हो गया और एक नया MAP जारी किया जाता है।
- नीचे जो चित्र आप देख रहे हैं उसमे-
- पहला वाला– White Color मे जो नजर आ रहा है वो यहूदियों की आबादी वाला क्षेत्र है, हालांकि उनकी आबादी ज्यादा थी लेकिन जमीन सिर्फ 6% थी।
- दूसरा वाला– ये Map है यूनाइटेड नेशन द्वारा फिलिस्तीन के बँटवारे के बाद का जिसमे सफ़ेद रंग मे इस्राइल है और हरे रंग मे फिलिस्तीन।
- तीसरा Map- ये है अरब इसराएल युद्ध के बाद का सीन जिसमे अरब की हराने के बाद इसराएल ने और जमीन कब्जा कर ली।
- चौथा Map– है आज की ताजा स्थिति जिसमे Palestine गायब सा हो गया है।
Arab Israel War 1949
UN-संयुक्त राष्ट्र के बँटवारे से अरब देश बिलकुल भी खुश नहीं थे। उधर इस बँटवारे के बाद यहूदी काफी खुश थे क्यूंकी उनको अपना देश वापस मिल चुका था। भले ही किसी ने कब्जा किया हुआ हो फिर भी लंबे समय के बाद उसे हटना पड़ेगा तो दुख तो होगा ही।
इधर Britain जो Palestine पर शासन कर रहा था वहाँ से निकल जाते हैं। Britishers के जाने के अगले दिन ही सारे अरब देश जिसमे Egypt, Seriya, Saudi Arab, लेबनान, जॉर्डन, यमन, इराक ये सब मिलकर इसराएल पर धावा बोल देते हैं। कहाँ इतने सारे देश कहाँ छोटा सा इसराएल जो अभी अभी देश बना है।
सबने सोचा की अब इसराएल फिर मिट जाएगा जैसे पहले हुआ था। लेकिन यहूदियों का जज्बा और अस्तित्व बचाने का युद्ध ऐसा पलटा की छह दिन मे ही अकेले इसराएल ने सारे अरब देशों को रगड़ दिया। अरब देशों को पीछे हटना पड़ा।
अब इसराएल युद्ध जीत चुका था और उनके पास जितना यूनाइटेड नेशन ने इसराएल की जमीन दी थी उससे काफी ज्यादा हिस्सा अपने कब्जे मे ले चुका था। इस युद्ध के बाद करीब 7 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी बन गए, अरब देशों का दांव पूरा उल्टा पड़ गया था। नीचे जो Map आप देख रहे हैं उसमे पहला वाला है युद्ध के पहले का इसराएल और दूसरा है युद्ध के बाद का इसराएल। अंतर स्पष्ट है –
इसके बाद 1950 मे इसराएल ने एक Law पास किया जिसमे कहा गया की पूरी दुनिया मे कहीं भी कोई यहूदी है वो इसराएल आ सकता है और उसे इसराएल की नागरिकता मिल जाएगी।
स्वेज़ नहर संकट (Suez Canal Issue)
स्वेज़ नहर 1869 मे चालू हुई थी, इसको बनाने मे फ़्रांस और इजिप्त सरकार का पैसा लगा था। ये नहर इजिप्त के बीच मे पड़ती है और यही से ईस्ट यूरोप के व्यापार गतिविधियां चलती हैं। 1875 मे आर्थिक संकट की वजह से Egypt सरकार ने अपने Suez Canal का अपना share United Kingdom को बेच दिया इसके बाद ये नहर थी तो Egypt की जमीन पर लेकिन इसका कंट्रोल Egypt के पास नहीं रहा बल्कि UK और फ़्रांस के पास चला गया।
1956 Egypt-Israel War
उस समय ये नहर बहुत अधिक महत्वपूर्ण थी क्यूंकी Israel से लेकर लगभग सभी देशों का व्यापार इसी स्वेज़ नहर से होकर चलता था। 1956 मे Nasser Yarafat जो इजिप्त के शासक थे उन्होने कहा की ये नहर हमारी जमीन पर बना है इसलिए हम इसके मालिक हैं।
UK, फ़्रांस से काफी समझाया की पैसा हमारा लगा है और ये गलत है, लेकिन Yasser का झुकाव अरब की तरफ था और वो इस्राइल से नफरत करते थे। बात इतनी आगे बढ़ गई की इस्राइल ने फ़्रांस और UK की मदद से Egypt पर हमला बोल दिया और इस्राइल से सटे इजिप्त के इलाके जो स्वेज़ नहर तक फैले थे अपने देश मे मिला लिया।
1957 मे यूएन बीच मे आता है और Israel को समझा बुझाकर इजिप्त का जीता हुआ हिस्सा वापस करवा देता है। साथ ही Israel Agreement करवाता है की आगे से कभी भी Egypt स्वेज़ नहर मामले मे टांग नहीं अड़ाएगा और व्यापार बाधित नहीं करेगा। UK और फ़्रांस को पैसा लगाने के बावजूद खाली हाथ वापस जाना पड़ता है।
Israel-Arab War 1967
Egypt एक युद्ध मे हार से खार खाये बैठा था, उसके एकबार फिर अरब देशों के साथ मिलकर तेहरान का एरिया जहां से इस्राइल के व्यापारिक ships निकलते थे उसको बाधित कर दिया। साथ ही अरब देशों के साथ मिलकर युद्ध की तैयारी कर लेते हैं क्यूंकी उन्हे पता था इस्राइल अटैक तो करेगा।
लेकिन फिर एकबार सभी अरब देशों को इस्राइल एक साथ हारा देता है। और फिर से इजिप्त, गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक का हिस्सा कब्जे मे ले लेता है। एकबार फिर UN बीच मे आता है लेकिन इसबर Egypt का एरिया तो वापस कर देता है Israel लेकिन West Bank और गाज़ा पट्टी का कब्जा छोडने से मना कर देता है।
PLO – Palestine Liberation Organisation
- PLO 1964 मे बनी एक संस्था है जिसका उद्देश्य Palestine की जमीन जो युद्ध के बाद से Israel के पास चली गई उसको आज़ाद करवाना।
- PLO ने अलग अलग तरीके से कई बार Israel पर अटैक किया लेकिन Israel से टक्कर ले पाना उनके बस की बात नहीं थी।
- कुछ समय संघर्ष के बाद अरब और PLO को समझ मे आ गया था की युद्ध मे Israel की हराना आसान नहीं है।
- इसके बाद PLO ने कई अटैक किए Israel पर, छिटपुट घटनाओं को अंजाम दिया, कई प्लेन हाइजैक किए, लेकिन Israel की खुफिया Agency Mossad जबर्दस्त काउंटर अटैक करके बदला लेने लगी।
- PLO के ज़्यादातर लड़ाके लेबनान से ऑपरेट करते थे और खतरे को पहचान कर Israel ने Lebnan पर हमला कर कर दिया और इसमे करीब 18000 लोग मारे गए। इसके बाद पीएलओ काफी कमजोर पड़ गया।
- 1988 आते आते PLO ने two state theory की मान लेना ही ठीक समझा, पहले तो इन का मकसद Israel को भगाकर स्वतंत्र Palestine बनाना था लेकिन वो अब असंभव लग रहा था तो इनहोने भी हालात से सम्झौता करना ही बेहतर समझा।
- अब PLO कहने लगा की हमे UN का बटवारा मंजूर है उसके हिसाब से ही हमारी जमीन वापस कर दो, लेकिन अब Israel जीती जमीन वापस करने को तैयार नहीं है क्यूंकी सुरक्षा ही दृष्टि से वो एरिया Israel के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण लोकेशन है।
- Israel पूरी तरह समझ चुका है की अरब यदि और ताकतवर हो गए तो वो Israel को मिटाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे इसलिए Israel भी अपनी Strategic Locations को वापस करने के लिए राजी नहीं है।
- हालांकि 13 सितम्बर 1993 मे PLO और Israel के बीच मे सम्झौता होता है जिसमे इस्राइल, गाज़ा पट्टी और West Bank एरिया वापस कर देता है। लोगों को लगता है इससे दोनों देश शांति से रहेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
हमास कैसे बना?
- फ़िलिस्तीनी सुन्नी मुसलमानों की एक सशस्त्र संस्था है जो फ़िलिस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण की मुख्य पार्टी है। हमास का गठन 1987 में मिस्र तथा फलस्तीन के कट्टरपंथी सुन्नी मुसलमानों ने मिलकर किया था जिसका उद्धेश्य क्षेत्र में इसरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करनी थी।
- 1993 के समझौते के बाद Israel Gaza और West Bank मे अपनी दखल बंद नहीं करता है जिससे फिलिस्तीनीयों मे पीएलओ के खिलाफ असंतोष जन्म लेता है। पीएलओ के खिलाफ असंतोष के कारण हमास को फायदा हुआ और लोगों ने पीएलओ को छोडकर हमास का साथ देना शुरू कर दिया।
- पीएलओ के कमजोर पड़ने के बाद फिलिस्तीनीयों का समर्थन हमास को मिलने लगता है और ये लोग लीड रोल मे आ जाते हैं ।
- Hamas को पैसे और हथियार अरब देश सप्लाइ करते हैं, Israel और PLO (यानि Palestine) मे कोई भी नेता अगर शांति की बात करता है तो लोग उसे पसंद नहीं करते हैं। Yitzhak Rabin के इसराएली PM हुये थे जो Palestine के साथ शांति की बात करने लगे थे लोगों ने उन्ही को मार दिया। और जब PLO ने शांति की बात की तो लोगों ने हमास को सपोर्ट करना शुरू कर दिया था। इसलिए भी दोनों देशों मे शांति मुश्किल है।
- Hamas नाम का यह संगठन मुख्यतः गाज़ा पट्टी से ऑपरेट करता है और ये आत्मघाती हमलों के mastermind हैं और इस्राइल मे अब कई Suicide Attack प्लान कर चुके हैं। इसके कारण इस्राइल भी गाज़ा पट्टी पर हमले करता रहता है।
- इसके अलावा लेबनान से एक और खतरनाक आतंकी संगठन इस्राइल के खिलाफ ऑपरेट करता है इसका नाम है – हिज्बुल्ला
Conclusion Remarks on Israel-Palestine Conflict
देखिये अगर हम निष्पक्ष होकर इतिहास के हिसाब से देखें तो – येरूशलम पे पहला हक Jews का था, उसके बाद Christianity आई और तीसरे नंबर पर आया इस्लाम।
लेकिन बात ये है की जिसको इतिहास सूट करता है वो बात को इतिहास के हिसाब से Discuss करना चाहता है और जिसको नहीं सूट करता वो आज की बात करता है की “यथास्थिति को बरकरार रखना चाहिए”। ऐसी की कुछ दलीलें भारत मे अयोध्या, मथुरा और काशी के मामले मे देखने को मिलती हैं। हिन्दू कहते हैं इतिहास मे हमारा था जिसे तोड़ के मस्जिद बनाया गया और मुस्लिम कहते हैं की हमारा बाद मे बना और अभी तक है तो वो हमारी जमीन हुई।
ऐसा ही Jews के साथ है- वो पूरा एरिया “Kingdom of Israel” था, वहीं उनका “Temple of Mount” था जिसे तोड़ दिया गया इसलिए Jews अपना अधिकार चाहते हैं उसपर। हमलों को झेलने के बाद Jews यूरोप मे शिफ्ट तो हो गए थे लेकिन वो जब भी पूजा करते थे येरूशलम की तरफ मुह करके पूजा करते थे, क्यूंकी वही पर था उनका Temple Of Mount। जैसे भारत मे Muslims मक्का की तरफ मुह करके सजदा करते हैं। Jerusalem मुस्लिमों के लिए भी काफी ऐतिहासिक महत्व रखता है तो उन्हे भी मंजूर नहीं।
देखा जाए तो Palestinian ने अपनी जमीने बेंची यहूदियों को पैसे के बदले अपनी मर्जी से जिससे वहाँ पर उनकी आबादी बसी ये पहली गलती थी और दूसरी गलती थी- कमजोर समझकर अरब देशों ने इसराएल पर हमला गलत किया क्यूंकी हारने पर आपको कुछ न कुछ जमीन तो गंवानी ही पड़ेगी।
उम्मीद करते हैं आपको Israel-Palestine Conflict पूरा क्लियर हो गया होगा। कौन सही कौन गलत? आपकी इस मामले मे क्या राय है कमेंट बॉक्स पूरी तरह से खुला है आपका स्वागत है।