Don’t judge a book by its cover: कभी कभी हम जो प्रत्यक्ष अपनी आँखों से देखते हैं वह भी सच नहीं होता है, और शायद इसीलिए कहा जाता है किसी के बारे मे राय बनाने से पहले ठीक से सोच समझ लेना चाहिए। अँग्रेजी की एक कहावत भी है “don’t judge a book by its cover” और इसी कहावत पर है हमारी ये कहानी-
हिन्दी मॉरल स्टोरी – don’t judge a book by its cover
एक व्यक्ति होते हैं जिन का नाम आकाश चड्ढा है, एकदिन वो अपने बेटे के साथ मंदिर में बैठे हुये थे। उनके बेटे का नाम शिवम हैं और उसकी उम्र 25 वर्ष हैं। शिवम उस दिन बहुत ही खुश लग रहा हैं, जो कि उसकी हरकतों से साफ जाहिर हो रहा हैं। उसके बारे मे एक चीज काफी अजीब थी, वो ये की शिवम काफी अजीब और बचकाने प्रश्न कर रहा था अपने पिता आकाश चड्ढा से, जिसके कारण हर किसी का ध्यान उसकी तरफ जा रहा हैं. खासतौर पर वही पास में बैठे बुजुर्ग दंपत्ति वो चाह कर भी अपना ध्यान शिवम से हटा नहीं पा रहे थे.
शिवम अपने पिता से पूछता हैं : पापा ये गणेश जी ऐसे क्यूँ दिखते हैं ? इनकी नाक ऐसी क्यूँ हैं ?
शिवम के पिता चड्ढा जी ने बड़े ही शांत मन से खुशी के साथ अपने बेटे को भगवान गणेश की कहानी सुनाते हैं और तब शिवम को गणेश जी की नाक जिसे सूंड कहते हैं के बारे में पता चलता हैं।
शिवम ऐसे कई सवाल करता हैं- जैसे
- आसमान का ये रंग कौन सा रंग हैं?
- इस पंछी का नाम क्या हैं ?
- नदी का रंग क्या हैं ?
- ये पुष्प किस रंग का होता है?
ऐसी अनगिनत सवाल जो कि बहुत छोटा बच्चा अपने माता पिता से करता हो। थोड़ी दूर से देख रहे उस दंपत्ति को बहुत आश्चर्य होता हैं और वो दोनों आपस में बाते करने लगते हैं।
जिसे देख शिवम के पिता को कुछ महसूस होता हैं, पर वो उनकी तरफ ध्यान ने देते हुये मुस्कुराते हुये अपने बेटे के सवालों का बड़े प्यार से जवाब देने लगते हैं.
दोनों बुजुर्ग दंपत्ति को बैचेनी होने लगती हैं उन्हे यकीन हो जाता है की आकाश चड्ढा का बेटा शिवम पागल है। ऐसा वहाँ बैठे सभी लोगो से कहने लगते हैं और अपनी जान पहचान में शिवम की चर्चा करने लगते हैं।
अगले दिन भी दंपत्ति को शिवम और Mr. चड्ढा मिलते हैं और इस बार वो दोनों शिवम के पिता के पास पहुँच जाते हैं। वे कहना चाहते थे की शिवम को मेडिकल चेकअप और treatment की आवश्यकता है।
थोड़ा हिचकिचाते हुये दंपत्ति ने मिस्टर आकाश चड्ढा से कहते हैं –
भाई साब – क्या ये आपका बेटा है?
जी हाँ भाई साहब ये मेरा बेटा है- चड्ढा जी ने उत्तर दिया।
वो समझ जाते हैं की दंपत्ति के मन में कुछ हैं जो वो कहना चाहते हैं लेकिन हिचकिचा रहे हैं। तब ही चड्ढा साहब दंपत्ति से कहते हैं, कि आप दोनों कुछ कहना चाहते हैं तो कह सकते हैं।
तब दंपत्ति हिम्मत करते हुये कहते हैं, कि बुरा मत मानियेगा, आपने कभी अपने बेटे शिवम को किसी डॉक्टर को दिखाया?
किस बात के लिए मुझे शिवम को डॉक्टर को दिखाना चाहिए? – आश्चर्य से आकाश चड्ढा ने दंपत्ति से पूछा।
वो दोनों संकुचाते हुये कहते हैं मिस्टर चड्ढा आपके बेटे की कद काठी देख लगता हैं कि यह 25 वर्ष का होगा लेकिन इसकी हरकतों और सवालों से लगता हैं ये कुछ 3 से 5 साल का हैं। हम समझ रहे हैं पिता के लिए ये सच स्वीकार करना बहुत मुश्किल है। लेकिन अगर आप इस सच को स्वीकार ले और शिवम का इलाज करवाये तो शायद हालात में बदलाव हो जाये।
यह सुनकर चड्ढा जी को हँसी आ जाती है।
यह देख दंपत्ति को और अजीब लगने लगता हैं, तब दंपत्ति के चेहरे का भाव देख मिस्टर चड्ढा उनसे कहते हैं कि भाई साहब सच यह नहीं जो आप समझ रहे है।
दरअसल शिवम बचपन से ही देख नहीं सकता था वो नेत्रहीन था। कल ही उसकी आँखों का सफल ऑपरेशन हुआ हैं और अपने बेटे को कल सबसे पहले यहाँ ले आया।
ज़िंदगी में पहली बार उसने अपनी आंखो से दुनियाँ देखी, जानता समझता वो सब हैं लेकिन वो वापस अपने बचपन को जी रहा हैं और मैं भी उसका साथ दे रहा हूँ.
यह सुन दंपत्ति का सिर शर्म से झुक गया क्योंकि उन्हे अपनी भूल का एहसास हो गया था।
Moral of the Story – don’t judge a book by its cover (किताब को उसके आवरण से मत आंकिए)
अब तो आप समझ ही गए होंगे की किसी भी किताब को उसका कवर देखकर जज नहीं करना चाहिए। अक्सर हम जैसा देखते हैं जरूरी नहीं चीजे वैसी ही हों। इस कहानी से हमे सीख मिलती है की हमेशा चीजों की तह तक जाने का प्रयास करना चाहिए और कभी भी किसी चीज को उसके आवरण मात्र से नहीं आंकना चाहिए। और कभी कभी आँखों देखा भी सच नहीं होता है- इसलिए कहते हैं – don’t judge a book by its cover