अपने किए का क्या इलाज: Hindi Kahani Series मे ये एक और बेहतरीन हिन्दी मॉरल स्टोरी है जो बच्चों मे विवेकपूर्ण तरीके से सोचने और फैसले लेने के लिए प्रेरित करती है। इस हिन्दी कहानी को पढ़कर आपको भी अच्छा सबक मिल सकता है। दरअसल “अपने किए का क्या इलाज” एक हिन्दी कहावत भी है जिसका अर्थ आपको इस कहानी मे मिल जाएगा। तो चलिये आगे बढ़ते हैं इस कहानी मे –
अपने किए का क्या इलाज
प्राचीन समय मे एक गांव के किनारे एक किसान का घर था। घर के सामने ही उसके खेत थे। खेतों में गेहूं की पकी फसल खड़ी हुई थी। खेतों की रखवाली में पूरा परिवार रात-दिन लगा रहता था। कई साल बाद इतनी अच्छी फसल हुई थी। सभी लोग प्रसन्न थे। इस फसल के भरोसे किसान ने कई मनसूबे पूरे करने के विचार बना लिए थे।
किसान ने गाय और बकरी के साथ मुर्गियां तथा बतखें भी पाल रखी थीं। मुर्गियों और बतखों के लिए घर के बहर ही दरबे बना रखे थे। दरवाजे पर ही गाय और बकरी बंधी रहती थीं। घर के बाईं ओर एक छोटा तालाब था। मुर्गियां और बतखें तालाब तक घूमती रहती थीं और दाना चुगती रहती थीं। बतखें पानी में तैरती भी थीं।
उधर पास में ही एक जंगल था। उस जंगल की एक लोमड़ी किसान के घर तक चक्कर लगा जाती थीं। एक दिन मौका पाकर लोमड़ी किसान की एक मुर्गी को उड़ा ले गई। किसान को बड़ा दुख हुआ। घर के सभी लोग चौंकन्ने रहकर मुर्गियों और बतखों की देख-रेख करने लगे। लोमड़ी की लालच बढ़ी अब और जल्दी-जल्दी चक्कर लगाने लगी।
अब वह बिल्कुल सुबह जब दिन नहीं निकला होता है और दिन डूबने के बाद के अंधेरे में चक्कर लगाने लगी। मौका पाते ही कभी बतख को मार जाती और कभी मुर्गी को ले जाती। किसान ने लोमड़ी को पकड़ने और मारने के कई उपाय किए, लेकिन सफल नहीं हो सका। एक दिन उसने जाल फैलाकर लोमड़ी को पकड़ लिया।
किसान ने उसे तड़पाकर मारने की सोची।
उसने लोमड़ी की पूंछ में फटे-पुराने कपड़ों को लपेटकर मिट्टी का तेल डाला और आग लगा दी। लोमड़ी के गले में रस्सी बांधकर एक खूंटे से बांध दिया था। पूंछ में आग लगते ही लोमड़ी उछल-कूद में करने लगी। उधर बच्चे ये देखकर खुश होकर हो हो करके हंस रहे थे। कभी-कभी लोमडी पीछे हटकर गले से फंदा निकालने की कोशिश करती।
उछल-कूद के चक्कर में रस्सी में आग लग गई और जैसे ही रस्सी थोड़ी कमजोर हुई लोमड़ी की उछल कूद मे रस्सी टूट गई और लोमडी निकल भागी।
लोमड़ी ने सबसे पहले पूछं में लगी आग बुझाने की सोची। वह सामने ही किसान के खेत में घुस गई। वह आग बुझाने के लिए खेत में इधर-से-उधर और उधर-से इधर अपनी पूछ को दोनों से रगड़ती हुई भागती रही। दौड़ती रही। देखते-हीं-देखते सारा खेत धू-धूकर जलने लगा। खेत आग की लपटों से भर गया। एक-दो घंटे में किसान की लहलहाती फसल जलकर राख हो गई। किसान के घर में मातम-सा छा गया। रात को सोते समय उसे नींद नहीं आई।
किसान लेटा-लेटा सोचता रहा- ‘अपने किए का क्या इलाज‘।
अपने किए का क्या इलाज- इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
ये कहानी “अपने किए का क्या इलाज” हमे यह सिखलाती है की गुस्से और अशांत मन से कोई ऐसा फैसला नहीं लेना चाहिए जो हमे आगे भरी पड़ जाए। लोमड़ी की पुंछ मे आग लगाने से पहले यदि किसान एकबार ये सोच लेता की सामने उसकी पकी हुई फसल खड़ी है जिसमे एक चिंगारी उसकी साल भर की मेहनत बर्बाद कर सकती है।
हालांकि लोमड़ी ने उसका काफी नुकसान किया था उसका गुस्सा भी जायज था, परंतु लोमड़ी को सजा देने का और भी तरीका हो सकता था। किसान ने गुस्से और हड़बड़ी मे ऐसा निर्णय लिया जो उसकी बरबादी का कारण बन गया और उसकी खड़ी फसल जलकर रख हो गई- अब “अपने किए का क्या इलाज“?