असली मर्द कौन: अक्सर हम अपने आसपास लोग देखते हैं जो अपनी मर्दांगी की कहानी बाँचते फिरते हैं। मैंने ये कर दिया मैंने वो कर दिया, इस तरह की तमाम बातें। लेकिन क्या आप जानते हैं की वास्तव मे असली मर्द कौन होता है? यह हिन्दी कहानी आपको बताएगी की वास्तविकता मे असली मर्द कौन होता है और उससे किस प्रकार का व्यवहार अपेक्षित है। अगर आप भी अपने आप को मर्द समझते हैं तो जरूर पढ़िये ये कहानी और पढ़ने के बाद खुद खुद का मूल्यांकन जरूर कीजिएगा।

हिन्दी कहानी असली मर्द कौन?

आज हमेशा के मुकाबले ट्रेन में कम भीड़ थी। सुरेखा ने खाली जगह पर अपना ऑफिस बैग रखा और खुद बाजू में बैठ गई।
पूरे डिब्बे में कुछ मर्दों के अलावा सिर्फ सुरेखा थी। रात का समय था सब उनींदे से सीट पर टेक लगाये शायद बतिया रहे थे या ऊँघ रहे थे।

अचानक डिब्बे में 3-4 तृतीय पंथी तालिया बजाते हुए पहुँचे और मर्दों से 5-10 रूपये वसूलने लगे।
कुछ ने चुपचाप दे दिए कुछ बड़बड़ाने लगे।

“क्या मौसी रात को तो छोड़ दिया करो हफ्ता वसूली…”

वे सुरेखा की तरफ रुख न करते हुए सीधा आगे बढ गए।
फिर ट्रेन कुछ देर बाद रुकी कुछ लडके चढ़े फिर दौड़ ली आगे की ओर, सुरेखा की मंजिल अभी 1 घंटे के फासले पर थी।

वे 4-5 लड़के सुरेखा के नजदीक खड़े हो गए और उनमे से एक ने नीचे से उपर तक सुरेखा को ललचाई नजरो से देखा और बोला…
“मैडम अपना ये बैग तो उठा लो सीट बैठने के लिए है, सामान रखने के लिए नहीं…”

साथी लडको ने विभत्स हंसी से उसका साथ दिया।

सुरेखा अपना बैग उठाकर सीट पर सिमट कर बैठ गई। वे सारे लड़के सुरेखा के बाजू में बैठ गए।

सुरेखा ने कातर नजरो से सामने बैठे 2-3 पुरुषों की ओर देखा पर वे ऐसा जाहिर करने लगे मानो सुरेखा का कोई अस्तित्व ही ना हो।
पास बैठे लड़के ने सुरेखा की बांह पर अपनी ऊँगली फेरी बाकि लडको ने फिर उसी विभत्स हंसी से उसका उत्साहवर्धन किया।

“ओ …मिस्टर थोडा तमीज में रहिये”

सुरेखा सीट से उठ खड़ी हुई और ऊँची आवाज में बोली।
डिब्बे के पुरुष अब भी एलिस के वंडरलैंड में विचरण कर रहे थे।

“अरे ..अरे मैडम तो गुस्सा हो गई, अरे बैठ जाइये मैडम आपकी और हमारी मंजिल अभी दूर है तब तक हम आपका मनोरंजन करेंगे ” कत्थई दांतों वाला लड़का सुरेखा का हाथ पकड़कर बोला।

डिब्बे की सारी सीटों पर मानो पत्थर की मूर्तियाँ विराजमान थी।
उधर उन तृतीय पंथी (third gender) के लोगो ने सुरेखा की आवाज सुनी और आगे आये- “अरे तू क्या मनोरंजन करेगा, हम करते हैं तेरा मनोरंजन”

“शबाना ..उठा रे लहंगा, ले इस चिकने को लहंगे में बड़ी जवानी चढ़ी है इसे”

“आय …हाय मुंह तो देखो सुअरों का, कुतिया भी ना चाटे”

“बड़ी बदन में मस्ती चढ़ी है इनके, जूली..उतारो इनके कपडे , पूरी मस्ती निकालते है इनकी “

जूली नाम का भयंकर डीलडौल वाला तृतीय पंथी जब उन लडकों की तरफ बढ़ा तो लड़के डिब्बे के दरवाजे की ओर भाग निकले और धीमे चलती ट्रेन से बाहर कूद पड़े।

सुरेखा की भीगी आँखे डिब्बे के कथित मर्दों की तरफ पड़ी जो अपनी आँखे झुकाए अपने मोबाइल में व्यस्त थे, और असली मर्द तालिया बजाते हुए किसी और डिब्बे की ओर बढ़ चुके थे।

असली मर्द कौन? इस कहानी का क्या आशय है?

वैसे तो ऐसी कहानियाँ हमारे आसपास अक्सर घटित होती हैं, हो न हो आपने भी किसी न किसी सुरेखा के साथ ऐसा होते देखकर नजरें फेर ली हों। यदि आपके आसपास ऐसा कुछ हो रहा हो और आप पुरुष हैं साथ ही साथ आपके अंदर सामर्थ्य भी है और आप मदद के लिए आगे नहीं आते तो समझो आप मर्द की कैटेगरी मे नहीं आते। हाँ वो अलग बात है की सामने कई दरिंदे हो और आप उनसे निपटने की स्थिति मे न हों तो आपको सीधे युद्ध मे नहीं कूदना है। लेकिन समूह मे होकर भी आप मूक्दर्शक बने रहें तो फिर क्या फायदा।

असली मर्द कौन– ये कहानी हमे सिखाती है की हमे एक समाज के तौर पर प्रतिरोध करने से बचना नहीं चाहिए, क्यूंकी आज किसी और सुरेखा के साथ है कल आपके किसी जानकार सुरेखा के साथ भी हो सकता है ऐसा।


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